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हो सकेगी-इसी बहाने अपने इन विचारों को कार्यगत करने का उसने अपना प्रचास आरम्भ दिया। फलस्वरुप हान्नसः का नायिका के घर, और। दण्डनायिका की बेटियों का हेगड़े के घर आना-जाना शुरू हो गया और वह एक | आदत-सी हो गयी।
बामला और शान्तला में पहले से जो स्नेह था वह अब बढ़ने लगा। प्रकारान्तर से पद्मला के मानसिक द्वन्द्व में परिचित हो जाने के कारण उसके विषय में अधिक अनुकम्पा शान्तला की रही। इस वजह से वह उसकी और
अधिक ध्यान देती थी। धीरे-धीरे परस्पर आत्मीयता के भाव बढ़ते गये। इसके । फलस्वरूप हेग्गड़े के घर के अहाते के बगीचे के काम में दण्डनाधिका की बच्चियों भी शान्तला के साथ सहज भाव से मिलकर काम करने लगीं।
उस बगीचे में एक फुलवाड़ी भी बनी थी। इसके लिए एक बांस से बन. छप्पर भी बनाया गया था। पुष्य-लताओं को सहारा देकर फैलाने के लिए एक लताओं का गंपने के वास्ते क्यारियां बनायी जा रही थीं। जमीन खांदकर वाच । मिट्टी और खाद उन क्यारियों में भरका तैयार करने का काम चल रहा था। नौकर बुतुगा ने टोकरी में खाद परकर ला रखा। कलछा लेकर खाद उठाकर शान्तला ज्याही क्यारी में डालने लगी कि खाद के साथ कुछ चमकती चीज दिखाई पड़ी। शान्तला नं कुतूहल से उसे हाथ में उठाकर देखा। सोने के तावीज़ थे। उस टोकरी के पूरे खाद को उन्होंने फैलाकर खोज की तो सोने के चार तावीज़ निकले। उसने उन्हें साफ धुलवाकर अपनी माता को बताए। तब दाइनायिका की बेटियां भी साय थीं।
हेग्गड़ती ने उन्हें देखा और कहा, "अम्माजी, वह खाद टण्डनाधिका के घर से आयी है। इसलिए ये ताचीज उन्हीं के घर के होने चाहिए। इन बेटियों के हाथ उनकं घर भिजवा देंगे। मालिक के आने पर उन्हें भी बता देना।"
"अप्पाजी के द्वारा महादण्डनायक जी के पास सीधे पहुँचा देना अच्छा होगा | न?" शान्तला ने कहा।
"यह भी ठीक है। यही करेंगे।' माचिकब्बे ने कहा।
"ठीक है, इन्हें आप अपने ही पास रखे रहिए।" कहकर शान्तला अपनः | सहेलियों के साथ पौधों को रोपने के लिए चली गयी। चमेली की बेल को पद्मला ने और मल्लिका की बेल को चामला ने रोपा और शान्ताना ने नित्य मल्लिका की | बेल को रोपा। ये तीन ही क्रिस्मों की बेल उनके पास थीं। बोपी मी साथ रही। उसने कोई बेल नहीं रोपी। शान्तला ने बुतुगा से पूछा, "हरसिंगार को कहाँ रोपा |
गया है।"
__नौकर बुतुगा जगह बताते हुए बोला, ''यहाँ उसके लिए क्यारी बनायी है।
150 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो