SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यानाल का मनःस्थिति से प्रधान गंगराज अच्छी तरह परिचित थे। उन्हें अपनी हिन की गलती का पूरा नह अहमाय धा। कभी-कभी पन्नी की बातों में आ जाने पर भी मग्चिाने दण्डनायक के मन में बरे विचार नहीं छ; यह भी प्रधान जी जानन थे। उनकी मानजियां निरोप थीं और बड़ी 'भानजी का उन्होंने कभी एक वचन भी दिया था। वह सब अच्छी तरह समदान के बावजूद यह जानत ध कि इम विषय का म्वयं उंटेंग ना यह ग़न्नतफ़हमी का कारण बन जाएगा। इसी बजट में दण्डनायक को शान्त एव सहनशील होकर रहने की सन्तान उन्होंने टी थी। "दूमरे बर की खोज क्यों न करें। कभी बचपन में वचन दिया हा मा यदि सी बात पर अड़े रहे तो उस लड़की का का क्या हाल होगा: मका जीवन ही नष्ट हो जाएगा" --यों उन्होंन ।क-दो बार कहा भी। नर गाम्यान दण्डनायक ने कहा था, 'पद्यला से इस बारे में पूरे बिना आग कैसे व ह बिट गाड़ के बैटो है। कहती हैं कि अगर विवाह करूंगी ताई के साथ मंगो जिम मैंन पहल ग अपना दिल दिया है। दूसरे से विवाह करने पर जोर ग ना में किसी कग या नानाच में कूदकर मर जाऊंगी।" गो भावी निर्यात नटिन था। पना नहीं. उसके भाग्य में क्या लिखा है। देखना है। अब एक ही पागं बच रहा है। जिसन गनती की वह बले दिल से अपनी ग़लती स्वीकार कर महामालश्री एवं महागज कं पाँव पड़े और क्षमा-याचना करें। यदि बे क्षमा कर दें तो पचना के लिए भाग्य की बात हो मकेगी। प्रधान गंगगज ने अपनी गय बता दी। ___दगदनानिका की भावना थी कि यों अपमानित होकर जीने से मना बस्तर है । उसके सामने यह मबाल घा कि लड़की के हित से भी मान प्रतिष्ठा का प्रश्न बड़ा है। अब उस इस समस्या का सामना करना पड़ा। फिलहाग क्र. साल तक ना इस बात पर विचार करने के लिए समय मिन गया न? यह नो जानी-मानी बात है कि हग्गड़ की पन्नी और उसकी लड़की पर विद्वेष और असूया के भाव तो थे ही। इसके माध यह भी दृढ़ विश्वास था कि हेगड़े के अहाते के बगीचे के निा! जा खाद भिजवायी थी उसके साथ जिन यन्त्री को भी भिजवा दिया उनका +---मछदा असर हो ही जाएगा। इतना भर होते हा मो इसनं सोचा कि हेग्गइनी के साथ मैत्री वटाना चाहिए । यही मब उसे उचित लग रहा था। इन दोनों में मंत्री अगर विशेष रूप से न भी बढ़ सकी लो कम-से-कम लड़कियों को हागने की वटी के साथ अधिकाधिक आत्मीयता बढ़ाने के विचार उसके मन में दृढ़ होत गये। अपने विचारों को कार्य रूप में परिणत करने के लिए उसे मौका भी मिन गया था। हेगड़े परिवार के दोरममुद्र ही में रहने के कारण अपने और जनकं घगने कं अध्यापकवर्ग कभी-कभी मिन्नतं और कभी-कभी दोनों के बच्चों का एक जगह पठन-पाठन और विचार-विमर्श आदि कराते रहने से बच्चों की भलाई ट्रमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 14!।
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy