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बाल से विवाह का प्रश्न उठाया था । बल्लाल ने “महासन्निधान पहले नीरोग हो जाएं, फिर इस बारे में सोचेंगे" कहकर प्रश्न को टाल दिया था । यद्यपि वह समझता था कि यह सवाल अब उठता ही रहेगा। ग्राम में रहते समय बल्लाल से बिट्टिदेव ने इस सम्बन्ध में प्रश्न उठाया भी था। अब माँ भी सुझाये बिना न रहेगी। इस समस्या का हल आसानी से निकल आता, यदि महादण्डनायक ने पद्मला का विवाह कर दिया होता। उन्होंने उसका विवाह नहीं किया । महादण्डनायक परियाने ने या दण्डनायिका चामब्बे ने कहीं किसी से इस सम्बन्ध में बात तक नहीं उठायी। पद्मला ने क्या गलती की है - इस सम्बन्ध में एक निश्चित और सकारण पत नहीं होने के कारण, भाई ब्रिट्टिदेव के कहे अनुसार उस लड़की से सीधे बातचीत कर लेनी चाहिए। असमंजस में पड़े रहकर अब अन्दर-ही-अन्दर घुलते रहने का समय नहीं रहा, इससे छुटकारा पाने के उपाय में बल्ताल सोचता ही रहा कि इतने में महाराज विनयादित्य का स्वर्गवास हो गया। इससे यह समस्या तात्कालिक रूप से टल गयी, साल भर के लिए। काश! पद्यला का हो जाना स्वा-यह सब बल्लाल सोचता रहता । फिर भी रोज सुबह-शाम किसी-न-किसी कारण से दण्डनायक मरियाने से मिलना होता ही रहता था । कभी-कभी पद्मला, उसकी बहिनों और उसकी माँ के आमने-सामने होने के मौके भी आ जाते थे। अगर दोरसमुद्र को छोड़ दें तो इससे भी बच लेंगे-यों भी वह सोचता था। ये सब विचार मन में रखकर वह अपनी माँ के पास गया और बोला, "माँ, हमने प्रभु के सभी औध्वदैहिक संस्कार यगची नदी के तट पर किये। महासन्निधान के भी संस्कार कर्म वहीं करने की इच्छा है। साल भर के लिए बेलापुरी क्यों न जाया जाए ?"
"विचार अच्छे हैं। प्रधानजी से विचार-विमर्श करेंगे।" एचलदेवी ने कहा । विचार-विमर्श के बाद निर्णयानुसार महामातृश्री, महाराज बल्लाल, बिट्टिदेव, उदयादित्य चिष्णम दण्डनाथ और डाकरस दण्डनाथ- ये साथ मिलकर बेलापुरी चले गये। हेग्गड़े भारसिंगय्या दोरसमुद्र ही में रहे।
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यह कहने की जरूरत नहीं कि कवि नामचन्द्र भी वेलापुरी गये बल्लाल के हित की दृष्टि से यह व्यवस्था आवश्यक होने पर भी, हेगड़े परिवार के दोरसमुद्र ही में ठहर जाने के कारण बिट्टिदेव और एचलदेवी को अपने चाहनेवालों का साथ न रह सकना कुछ खटकता जरूर था। परन्तु बल्लाल का हित - चिन्तन सबसे प्रधान था, यह बात सब लोग जानते थे। इसलिए सभी को अपना मन परिस्थिति के अनुसार बना लेना पड़ा ।
148 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो