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________________ को समझाने की कोशिश करे। बल्लाल को ठीक न ऊँचने के कारण वह अभी कुछ दिनों से चापला से भी सीमित व्यवहार रखता था। परन्तु ऐसा नहीं हुआ था कि उनमें आपस में जो वन्धुत्व रहा वह कम हुआ हो। उसका लक्ष्य एक था, वह यह कि पद्यला और बललाल के बीच जो अनवन हो गयी है वह फिर से जुड़ सकती हो तो अच्छा है। इसमें आनेवाली कठिनाइयों को दूर करें ताकि दोनों में पहले का-सा सरस भाव उत्पन्न होने का रास्ता खुल जाए। किसी भी मार्ग को बन्द नहीं रखना चाहिए। हमारा व्यवहार बल्लाल को परेशानी पैदा करने के लिए नहीं है, यह सोचकर वह बहुत सतर्कता से हर बात पर विचार किया करता था। बरं के सिंहासनारोहण के पात एचदेवी उत्तक विवाह की बात उठाने की सोच रही धी। पक्षाघात पीड़ित महाराज विनयादित्य ने भी एचलदेवी से बातचीत कर बालाल का विवाह जल्दी करा देने के लिए ही कहा था। ये इसके बारे में सोच रही थी कि उसके सामने इस विषय को किस ढंग से छेड़ें। उनके मन में पद्मला के विषय में कोई विरोधी भाव न थे। क्योंकि वह जानती थीं कि बेटा हृदय से उसे प्रेम करता रहा...लेकिन पद्मला का व्यवहार भी उसकी माँ जैसा हो जाए तो उससे अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए वह खुद उस पर जोर नहीं डाल सकती थी। उनकी यह भावना थी कि पदि भगवान की प्रेरणा से यह छूट जाय तो अच्छा ही है। वह अपने मन में विचारती थीं कि बल्लाल खुद ही उसके विषय में जब अनादर की भावना रखता है तब इससे इस विषय की चर्चा करते समय बड़ी सतर्कता बरतनी होगी। एचलदेवी यह जानती थीं कि बिट्टिदेव और शान्तला में परस्पर बहुत गहरा प्रेम है। इस तरह का प्रेम अगर न हुआ होता तो वह क्या सोचती, वह कहना आसान ही था। यह तो वह अच्छी तरह समझ गयी थी रानी बननेवाली के लिए जिन गुणों का होना आवश्यक है ने सब गुण शान्तला में हैं। परन्तु अब ये विचार कार्य रूप में परिणत होनेवाले नहीं हैं। ऐसी हालत में विवाह के विषय में बात करनी हो तो माँ को कम-से-कम इस बात का निश्चित ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है कि कन्या कौन हो। कहाँ-कहाँ ऐसी लड़कियाँ होंगी इसके बारे में जानकारी संग्रह करना चाहती थीं। पद्यला की बहिन चामला के बारे में एक तरह से अच्छी भावना एचलदेवी की थी। भला क्यों न होनी चाहिए?-सोचते हुए यह विचार आया कि यह हो सकता है। फिर भी वह दण्डनायिका चामब्बे की बेटी होने के कारण बल्लाल के मनोगत को जाने बिना इस सम्बन्ध में बात्त उठाना अनुचित ही लगा। वह इस विषय में किसी निर्णय पर पहुँच न पायी थीं कि इतने में वृद्ध महाराज विनयादित्य का स्वर्गवास हो गया। विवाह का प्रश्न भी स्थगित हो गया। - पट्टाभिषेक महोत्सव के बाद स्वयं वृद्ध महाराज विनयादित्य ने ही एक बार पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 147
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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