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________________ हैं। आप लोगों की निष्ठा पर उनका और राज्य का भविष्य निहित है। आप लोगों की निष्ठा सदा एक-सी बनी रहे।" इतना कहकर सभा का विसर्जन किया। सब लोगों के चले जाने के बाद महाराज विनयादित्य ने युवरानी को बुलवाया और विठलाकर उनसे कहा, "बेटी, आज से तुम महामातृश्री राजमाता हो। इस समारम्भ के सफरन रीति से सम्पन्न होने तक जीवित रखने की प्रार्थना अर्हन से की थी। वह करुणामय है। अब निश्चिन्त हुए। अब हमारा जीवन थोड़े दिनों का है। निमित्त मात्र के लिए बड़े बने रहता प्रभुपात का है कि हम व्यतीत किये। अब आगे से राजमहल का सारा बड़प्पन महासाध्वी, सहनशीला, करुणामयी तुम्हारे जिम्मे है।" एचलदेवी ने मौन भाव से उनकी वन्दना की, चरण छुए। महाराज बिनयादित्य ने हृदय से आशीर्वाद दिया। इसके पश्चात् महाराज विनयादित्य बहुत दिन शैयाशायी न रहे। उस संवत्सर के समाप्त होने से पहले ही वे सुरलोक सिधार गये। महाराज विनयादित्य की मृत्यु हो जाने से महामातश्री एचलदेवी पर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी आ पड़ी, यह कोई कहने की आवश्यकता नहीं। सिंहासनारूढ़ महाराज बल्लाल यौवनोचित उल्लाह से निष्ठा के साथ अपने उत्तरदायित्र को निभाते रहे। महामालनी एचलदेवी के अत्यन्त विश्वासपात्र व्यक्ति चिण्णम दण्डनाथ और हेग्गड़े मारसिंगय्या थे। प्रधान गंगराज के प्रति गौरव की भावना रही। फिर भी दण्डनाचिका चामञ्चे प्रधान की बहिन होने से, प्रधाननी पर आत्मभाव रखने की उनकी इच्छा नहीं हो रही थी। परन्त किसी को दूर नहीं रख सकती थी। उन्होंने सोचा कि सम्पूर्ण राज्याधिकार सूत्र अपने बच्चों के हस्तगत होने से पूर्व सबके साथ विचार-विमर्श करते रहना ही योग्य है। बिना किसी असमाधान या असन्तुष्टि के राज्य परिपालन व्यवस्थित रूप से चलने लगा था। वास्तव में इस मौके पर प्रधान गंगराज ने अपनी सम्पूर्ण निष्ठा दिखायी थी। महादण्डनायक मरियाने ने भी उसी तरह निष्ठा से काम लिया था; फिर भी उनके प्रति महामातृश्री एचलदेवी या महाराज बल्लालदेव आत्मीयता दर्शाने का मन नहीं बना सके थे। तो भी उनसे व्यवहार इस तरह करते रहे कि मानो वे उनके अत्यन्त निकट के हैं। राजमहल के मांगलिक कार्यक्रमों में दण्डनाविका चामध्ये और उसकी बच्चियों रहा करती थी। फिर भी विशिष्ट कार्यकलापों में उन लोगों का कोई विशेष सम्बन्ध नहीं होता था। प्रधानजी की पत्नी लक्कलदेवी को अग्रस्थान सहज ही प्राप्त हुआ था, वे स्वभाव से ही ऐसी महासाध्वी मणि थीं। दण्डनायिका पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो : 145
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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