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________________ वह ठीक ही है" कहकर शान्तला ने पद्मला की ओर देखा। पद्मला के चेहरे पर . कुछ आशा की झलक उभर आयी धी। "अच्छा, आप लोगों की मन्त्रालोचना चालू रहे'' कहकर बिट्टिदेव चला गया। दाद में शान्तला ने कहा, "देखा, आपका भय निराधार है। आइए, महाराज के पट्टाभिषेक के समय हाथ में जो फल दिया जाएगा उसे पणियों से सजाना है।" कहकर बात न बढ़ाकर पद्मला को ले गयी। पद्मला ने जाकर अपनी माँ को सव बताया। पट्टाभिषेक समारम्भ सन्निहित होने से सबका ध्यान उस ओर रहने के कारण अन्य किसी बात के लिए मौका ही नहीं रहा। राजकुमार बल्लाल का पट्टाभिषेक समारम्भ शक संवत् 1022 के विक्रम मंवत्सर माघ बदी सप्तमी के दिन शास्त्रोक्त विधि के अनुसार बड़ी धूमधाम के साथ सम्पन्न हुआ। एरवंग प्रभु के सिंहासनारोहण समारम्भ की वेला में प्रजा को दुःख सागर में डूबना पड़ा था। आज यह आनन्दोत्साह के चरम तक पहुंच गयी थी। यदि कोई दु:ख था तो वह यह कि महाराज विनयादित्य शैयाशायी थे। इसके सिवाय अन्य कोई दुःख न धा। एचलदेवी की आँखों में आनन्द और दुःख के संगम के अश्रु भर आये घे। आनन्द और दुःख इन दोनों के बीच का बाँध शायद टूट गया था। पतिदेव की आज्ञापालन करने की तृप्ति से उनका अन्तःकरण भर आया था। ___ पट्टाभिषेक महोत्सव के ही साथ पहाराज के जुलूस का भी प्रबन्ध किया गया था। जिससे सारी प्रजा को अपने नये महाराज के दर्शन करने का सुअवसर मिल सके। राजधानी के घर की छतों और महलों के कगूरों पर पोसल झण्डे फहर रहे थे। ___ "पोसल सन्तानश्री की जय हो, चिरायु हो, महाराज वल्लाल प्रभु चिरजीवी हो।' ध्वनि से दसों दिशाएँ गूंज उठीं। "अभी महाराज का पाणिग्रहण मेरी लड़की से हो गया होता तो कितना अच्छा था! खैर वह समय भी दूर नहीं" -यही समझकर एक तरह से दण्डनायिका सन्तुष्ट हो रही थी। उस दिन रात को राजमहल में प्रवेश करने के बाद युवराज बल्लाल ने महाराज विनयादित्य से आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर बिट्टिदेव, उदयादित्व और प्रधान आदि सबने स्वामिनिष्टा की शपथ ली। धीमी आवाज में महाराज विनयादित्य ने कहा, "महाराज अभी छोटी आयु के 144 : पट्टमहादेवी शान्तला : 'माग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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