SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ''नहीं छोटे अप्पाजी, वह मेरा दर्द है। मैं भुगत लूँगा। उसे दूसरों में बाँटना ठीक नहीं।" यह दर्द अकेले तुम्हारा नहीं। ऐसा होता तो चुप रहा भी जा सकता था। भैया! तुम्हें मन को खुश रखना चाहिए। तुम्हारा खुश रहना राज्य के हित की दृष्टि से बहुत ही आवश्यक है। इसके साथ जिसने अपने हृदयान्तराल से तुमसे प्रेम किया है, उस लड़की के लिए तुम्हारे इस तरह के व्यवहार से कितना दुःख हुआ होगा-इस बात पर भी तुमने कभी विचार किया है। ___“वह उसका भाग्य है। उसे ठीक करने की आवश्यकता नहीं।" "हमारी वजह से, हमारे व्यवहार से दूसरों का भाग्य जब बदलता हो तब हमें इस विषय में स्पष्ट रहना होगा न? भैया! वह लड़की जिसने तुमसे प्रेम किया उसने कभी सीधा ऐसा कोई व्यवहार किया है जिससे तुम्हारा दिल दुखे “उसने सीधा तो कुछ नहीं किया। परन्तु उसके परिवार का व्यवहार ठीक नहीं है। इसलिए उस घराने से सम्बन्ध रखना उचित नहीं।" __"यदि यही तुम्हारा निर्णय है तो तुम उस लड़की को कारण समेत स्पष्ट समझा दो और अपना रास्ता टोंक कर लो। उधर वह लड़की और इधर तुम इस तरह दोनों को दुःखी होना और घुलते रहना तो उचित नहीं। याँ घुलते रहने से तो दोनों में से किसी का भी कोई प्रयोजन सिद्ध न होगा। अगर मुझसे तुम न कहना चाहो तो मत कहो। मैं जोर नहीं डालूंगा। असली यात मालूम हो तो कुछ हल निकाला जाए इसी आशा से मैंने यह विषय छेड़ा है। इतना ही। तुम स्वयं ही उस लड़की से सीधा मिल लो और एक स्पष्ट मत अपने में बना लो। तुमने कभी उस लड़की से या उसके माँ-बाप से बात की है क्या?" । "नहीं, यदि बात करने जाएँ तो वे कोई-न-कोई कारण बताकर बात को टीक बैठाये बिना नहीं रहेंगे। इसलिए बात करने से कोई प्रयोजन नहीं निकलेगा।' "कम-से-कम माँ से इस विषय में बात की है क्या?" "प्रभु का असली मतलब ही यह था कि यह बात मां को मालूम न हो।" "तो मामला बहुत पेचीदा है। कुछ भी हो, मेरी अन्पबुद्धि में तो यही समझ में आता है कि उनके घरेलू व्यवहार कुछ अच्छे नहीं। तुमने भी यही बताया। तुममें जब यह भावना रही कि उनका व्यवहार अच्छा है तब तुपमें उस और अधिक प्रीति पैदा हुई। तुम्हारी उस भावना के बदलने में कोई-न-कोई ऐसी घटना अवश्य हुई होगी। बस उसी का ही फल है न जो तुममें यह परिवर्तन हुआ है?" "हाँ!" ''इस घटना में उस लड़की की क्या भूमिका रही है?" "मैं कुछ नहीं जानता। हो भी सकती है और नहीं भी।" पट्टपहादेवी शान्तला : भाग टो :: 113
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy