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________________ में विशेष भाग्यवान तो तुम हो। हेग्गड़े जैसे निष्ठावान लोगों का सहयोग कल सिंहासन पर बैठनेवाले को मिलेगा और वह तुम हो।" ___ "वह भी तो एक भाग्य ही है। परन्तु हेग्गड़े की बेटी का मन तुमने जीत लिया है। यह तम्हारा महाभाग्य है।'' बल्लाल ने बग़ल में बैठे लिट्टिदेव को बग़ल से छकर तथा रेविमव्या की तरफ़ देखकर आँखें मटकायीं। विट्टिदेव वास्तव में पुलकित हो रहा था। अपने मन की भावना को व्यक्त न करके अपने लक्ष्य को साधने के लिए उसे खुद-ब-खुद मौक़ा मिल गया, ऐसा सोचकर कहने लगा-''यह कौन-सा महाभाग्य है? राजकुमार होकर एक साधारण हंग्गड़े की लड़की का मन जीतना कौन-सा बड़ा काम है? इम दृष्टि से विचार करेंगे तो तुम मुझसे अधिक भाग्यवान हो क्योंकि तुमने तो महादण्डनायक की पुत्री नगा प्रधान की मां के दो बीत लेगा है।" बल्लाल के इस उत्साह पर भाई की इस बात ने पानी फेर दिया। वह पहले कन्धे उचकाकर, फिर जड़वत् बैठ गया। "क्यों भैया, मेरी बात से क्रोधित हो गये?" 'छोटे अप्पाजी, कृपा करके इस बात को न उठाओ। शान्त सागर में जब मन तैर रहा है तब वह कड़वी बात क्यों?'' "भैवा, मैं इसी कड़वी बात पर तुमसे विचार-विमर्श करने के लिए ही आज इधर इस एकान्त में बुला लाया हूँ। युद्धक्षेत्र से लौटने के बाद से तुममें एक बड़ा परिवर्तन आया है। खासकर दण्डनायक के परिवार के प्रति जो उत्साह दिखाते रहे थे, अब नहीं दिखता है। उनकी लड़की के प्रति जो भागना थी वह लुप्त हो गयी है। एकदम ऐसा क्यों हुआ? तुम खुद कहते हो कि यह कड़वी बात है, इस कड़वी बात को अकेले अपने में रखे रहोगे तो घुलते जाओगे। क्या हुआ, बताओ? यहाँ मैं, तुम और रेविमध्या-हम लीनों के अलावा अन्य कोई नहीं है। तुम कुछ भी कहो वह गुप्त ही रहेगा, कहीं प्रकट नहीं होगा।" "नहीं छोटे अप्पाजी, मैं कह नहीं सकता। उसे मुझ अकेले को भुगतना हैं।" “यदि बात इतनी अधिक कड़वी है, तो वह दीमक की तरह अन्दर-ही-अन्दर तुमको खोखला बना डालेगी। तुम कल पोप्सल महाराज होओगे। मैं तुमको ऐसा नहीं होने दूंगा। इस दुनिया में कोई ऐसी समस्या नहीं, जिसका हल न हो। इसलिए कुछ-न-कुछ हल निकल ही आएगा। कृपा करके बता दी, भैया।" "नहीं छोटे अप्पाजी, मैंने प्रभु को वचन दिया है कि इस विषय को किसी से नहीं कहूँगा।'' "जब तक वे रहे तब तक तुमने उसका पालन किया। अब उसे कहकर अपने दिल के बोझ को उतार डालो।" 138 :: पट्टमहादेवी शान्ताला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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