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________________ ही ऐसी व्यवस्था की थी। शक संवत् 1022 के विक्रम संवत्सर कार्तिक सुदी तेरस के दिन वेद-वेदांग - प्रवीण शिवशक्ति पण्डित द्वारा शिवलिंग स्थापना का समारम्भ सांगोपांग रूप से सम्पन्न हुआ । नाद, नृत्य के जनक और प्रेरक शक्ति स्वरूप नटराज महादेव के सान्निध्य में शान्तला की गानसुधा की धारा बही। शान्तला का नृत्य भी हुआ। लास्य के समय शिवकामिनी और ताण्डव करते वक़्त रुद्राणी जैसी लगती थी शान्तला । इस भंगिमा को देखकर मन्त्रमुग्ध-सा बैठा था बल्लाल । बग़ल में बिहिदेव बैठा था । बल्लाल ने भाई के कान में धीरे से कहा, "छोटे अप्याजी, महान है यह बहुत ही रम्य...सुन्दर!" भाई के मुँह से यह प्रशंसा सुनकर विट्टिदेव खिल उठा । मारसिंगय्या जी के हेगड़े बनकर ग्राम में आने से ग्रामवासियों के लिए एक विशाल समारम्भ देखने का सौभाग्य मिला था। ग्राम के प्रमुख पौरों ने इस महान सन्निवेश के स्मारक के रूप में एक शिलालेख की स्थापना कराने की सलाह दी। इसके बारे में युवरानी जी से निवेदन किया गया। "अभी हम एक पारिवारिक कार्य के निमित्त यहाँ आये हैं । अतः इस प्रवास में हमारा अन्य किसी भी तरह के कार्यक्रम में सम्मिलित होना उचित नहीं। इसके अलावा राजपरिवार के लोगों की उपस्थिति का जिक महासम्विधान की अनुमति के दिना करना उचित नहीं। इसलिए शासन का लेख अपने तक ही सीमित रखें। वही होना भी चाहिए क्योंकि मन्दिर निर्माण तो एक चिरस्थायी कार्य है ।" युवरानी एचलदेवी ने कहा । मारसिंगय्या ने "जी आज्ञा " कहकर सिर झुका लिया। वह अपने नाम का उल्लेख उस प्रस्तरोल्कोण में कराना नहीं चाहते थे। इसलिए वहाँ मूर्ति स्थापना के वर्ष - तिथि, वार एवं संवत् का ज़िक्र कराकर एक छोटा प्रस्तर लेख मन्दिर की जगत पर लगवाने की व्यवस्था करने का निर्णय किया। उस दिन शाम को रेविमय्या को साथ लेकर बल्लाल और बिट्टिदेव घोड़ों पर सवार होकर सैर करने ग्राम से बाहर निकल आये। बिट्टिदेव के अपने मन में जो समस्या उठ खड़ी हुई थी उसे हल करने के उपाय ढूँढने के इरादे से ही इस तरह की युक्ति निकाली थी। ग्राम के पूरब की ओर एक कोस की दूरी पर हेमावती से मिलनेवाली एक छोटी नदी हैं। उस नदी से थोड़ी दूर पर दक्षिण की ओर एक पगडण्डी है, उससे हटकर एक शान्त स्थान पर दोनों भाई जा बैठे। शाम का सुहावना समय था। धीरे-धीरे सूर्य पश्चिमांगना की गोद में विश्राम लेने के लिए 1 उतर रहा था | घोड़ों को पेड़ से बाँधकर रेविमय्या पास ही थोड़ी दूर पर जा बैठा था । वर्षाकाल 136 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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