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________________ बल्लाल कुछ और ही सोच रहा था : निर्मल अन्तःकरण कितना अनमोल हैं! वास्तव में मैंने हेगड़े परिवार के प्रति उचित व्यवहार नहीं किया। कितने पावन मन से हेगड़े की बेटी ने दत्तचित्त हो भगवान की स्तुति की और राजवंश और मेरे हित के लिए प्रार्थना की। उस प्रार्थना ने पत्थर को भी पिघलाया होगा । उसकी गानमाधुरी चमत्कारपूर्ण है। प्राणशक्ति से युक्त एवं भावभीनी होकर इत्तन्त्रियाँ शंकृत कर जाती हैं। वास्तव में छोटे अप्पाजी बड़े ही भाग्यवान हैं। यह उनके अनुरूप ही है। काश! वह मुझसे पहले जन्म लेता तो कितना अच्छा होता! मैंने जिस लड़की को चुना जिससे वादा किया वह लड़की तो वामाचारी के हाथ की कठपुतली है। हे अरिहन्त, मैंने कैसी गलती की वचपन में मीठी-चुपड़ी बातों और पद-प्रतिष्ठा के वशीभूत होकर असन्तुष्ट और अपरिपूर्ण जीवन की ओर मैंने क़दम रखा। मेरे माता-पिता यदि ठीक समय पर सही रास्ते पर न लगाते, अच्छे गुरूओं की व्यवस्था न करले, तो शायद पोय्सल वंश ही मेरे साथ समाप्त हो जाता महारानी केलेयब्बरसी जी की त्याग तपस्या तथा महासन्निधान की कुशाग्र बुद्धि ने मिल-जुलकर राजवंश को सुदृढ़ता दी। मेरी माँ ने पिता के जीवन की संयमी, औदार्ययुक्त एवं निर्मल प्रेम से परिपूर्ण बनाया। छोटे अप्पाजी का जीवन उनसे भी भव्य बनेगा। परन्तु मेरा जीवन ? इस सम्बन्ध में सोचना ही भयंकर है। भगवान की इच्छा को कौन जानता है सब कुछ पूर्व नियोजित है। मैं पुरुष हैं, देरी से भी विवाह कर सकता हूँ तो कोई हर्ज नहीं । परन्तु लड़कियों को कितने समय तक घर में अविवाहित रख सकते हैं? बिलम्ब करने से इस प्रसंग का निवारण हो सकेगा !... वही ठीक होगा । 2 यीं उन दोनों भाइयों की विचारधारा पृथक्-पृथक् ढंग से चलती रही। शायद बहुत देर बाद ही उन्हें नींद आ पायी। सुबह देर से जगे । निश्चय हुआ था कि वह दिन वहीं बिताया जाए। हेगड़े मारसिंगव्या ने युवरानी जी से निवेदन किया था कि सीधा राजधानी जाने के बदले ग्राम में दो दिन ठहरें तथा धर्मेश्वर मन्दिर में, जिसका निर्माण उन्होंने ही कराया था, शिवलिंग की स्थापना करें। हेमजी की प्रार्थना मान ली गयी थी । ग्राम में शिवलिंग की स्थापना के उद्देश्य से राजपरिवार के ठहरने की व्यवस्था करने का दायित्व सिगिमय्या को सौंपा गया था। इसलिए वह बेलगोल न जाकर पत्नी समेत ग्राम लौट आया था। हेग्गड़े मारसिंगय्या की सूचना के अनुसार सब व्यवस्था हो चुकी थी। बिना किसी आडम्बर के सहज भक्तिभाव से यह कार्य सम्पन्न हुआ। ग्राम के इर्दगिर्द पास-पड़ोस के लोग काफ़ी संख्या में इकट्ठे हुए थे | अगर पहले से यह मालूम हुआ होता कि युवरानी और राजकुमार पधारेंगे तो सम्भव है कि और अधिक संख्या में लोग इकट्ठे होते । हंगजी ने समझ-बूझकर 'पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो 135
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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