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________________ जाएंगे। अचछा, दण्डनायिका जी। कभी-कभी राजपहल में आती रहिए। गत वर्ष की बात अलग रही। समझी?" __"जो आज्ञा,' कहकर बेटियों के साथ दण्डनायिका चली गयी। युवरानी प्रचलदेवी और राजकुमार जब येनगोल मार्ग पर स्थित ग्राम पहुँचे तो मारसिंगय्या, माचिकब्बे और शान्तला ने उनका स्वागत किया। यह स्वागत निराइम्बर एवं हार्दिक था। युवरानी ने एक रात ग्राम में ही बिताने का निश्चय किया था। परन्तु दण्डिगन हाली नामक स्थान पर रात बितानी पड़ी। वहाँ सिंगिमय्या और सिरियादेवी ने उनका स्वागत किया। राजकुमारों को इस दण्डिगन हल्ली में सिंगिमय्या को देखकर वास्तव में आश्चर्य हुआ। जहाँ तक उनकी जानकारी थी, वे समझते थे कि सिंगिमव्या बलिपुर के हेग्गड़े के पद पर नियुक्त थे। यहाँ क्यों और कैसे आये? इस तरह के विचार उनके दिमाग में आने स्वाभाविक ही थे। बल्लाल और बिट्टिदेव ने इसके बारे में परस्पर विचार-विमर्श किया। दोनों ही इसके कारण से अनभिज्ञ थे। कारण जानने का कुतूहल हो रहा था। हेग्गड़े मारसिंगय्या के स्थान परिवर्तन का कारण तो उन्हें मालुम हो गया था मगर सिंगिमच्या के बारे में कुछ मालूम नहीं हुआ था। सिंगिमय्या से ही दांफ़्त करने का निश्चय करके बल्लानदेव ने इसकी तहकीकात करने का काम बिट्टिदेव को ही सौंप दिया। बल्लाल को यह मालूम था कि सिगिमय्या और विट्टिदेव के बलिपुर में रहते वक्त निकट का सम्पर्क था। परन्तु विहिदेव ने कहा, "इस सन्दर्भ में तहक़ीक़ात कर उन्हें सन्दिग्धावस्था में डालने के बदले सोधे माँ से पूछकर जान लेना अच्छा होगा। इसलिए आराम करने से पहले उन्होंने माँ से पूछा। एचलदेवी ने समझाते हुए बताया, "यह बात कभी न कभी तुम लोगों को जरूर ही मालूम होनी चाहिए थी। प्रभु के सिंहासनारोहण के सन्दर्भ में चालुक्य चक्रवती असन्तुष्ट धे। इस असन्तुष्टि का कारण यह था कि इस सम्बन्ध में हमने पहले उनसे अनुमति नहीं ली। इसी बहाने उन्होंने बलिपुर प्रदेश को पोसल राज्य के अधिकार से वापस लेकर उसे पहले जैसे वनवासी प्रान्त में विलीन करने की सूचना पट्टाभिषेक के समय में दी थी। उस समय प्रभु मृत्युशैया पर थे इसलिए यह बात गुप्त ही रखी गयी, किसी को बतायी नहीं गयी। यहाँ तक कि यह बात महासन्निधान को भी नहीं बतायी गयी थी। इसके कुछ समय बाद ही हेग्गड़े मारसिंगय्या जी ने प्रधानजी के मार्फत महासन्निधान को सूचित किया था। फिर प्रधानजी के आदेश से ही हेग्गड़ेजी ने महादण्डनायक को बताया था। अब भी यह पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 129
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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