SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भझमें कहा था। और यही उनका अन्तिम आग्रह था। कितनी बड़ी बात है ग्रह! यदि सब लोग उसे अपना ना यह भूमि स्वर्ग ही बन जाए क्योंकि तब यहां केवल महान आत्माएँ ही रहेंगी।" ___ इतने में दरवाज़े के बाहर से उपाहार की व्यवस्था की सूचना मिली। एचलदेवी ने उटकर कहा, "आडा" और दरवाजे की ओर चल दी। चामध्ये ने स्वयं आगे बढ़कर दरवाज़ा खोला। दोनों ने बच्चों के साथ मिलकर उपाहार किया। पश्चाला के मन को सन्तोष हो, ऐसा कोई प्रसंग नहीं उठा। पाठ समाप्त होते ही बल्लाल महासन्निधान से मिलने अथवा किली राजकार्य के बहाने चला गया। वास्तव में पाला उससे कान्त में बात करने की इच्छा रखती थी। वन, इचा एकतरफ़ा हो तो फलेगी कैसे विदा होत समय युबरानी ने कहा, "दण्डनायिका जी, आपको एक बात बतानी है। कल मैं वेनगोल की यात्रा पर राजकुमारों के साथ बाहुबली स्वामी का अनुग्रह प्राप्त करने जाऊँग।। वहाँ से लौटने के बाद अप्पाजी के यौवराज्याभिषेक का दिन निश्चय करेंगे। पहले जब हम बेलगोल की यात्रा पर गये थे तब आप साथ में घीं। अबकी बार हमने किसी को भी साथ नहीं ले जाने का निर्णय किया दण्डनाविका कहना चाहती थी कि हम भी साथ चलेंगी। इतने में युवगनी जी का निर्णय ही व्यक्त हो गया। यवरानी जी ने बहुत ही सौजन्यता से कहा धा तो भी वे दातें प्रकारान्तर सं इण्टनाचिका चापब्बे को चुभ-सी रही थीं। उसमें भी जब वामाचारी के देश निकाले के विषय में कह रही थीं तब उसका हृदय निचुड़ ही गया था। 'अपनी ग़लती को मानने का साहस जिनमें हो उनका मन निमल होता हैं'–यह बात जब युवरानी ने कही तब अपने मन के उस भाव को प्रदर्शित करने की इच्छा भी हुई। परन्तु उस समय उसे वह साहस नहीं हुआ। फिर भी उसके संयम को महान ही कहना चाहिए। किसी भी प्रसंग में उसने अपने मन के तुमुल-संघर्ष को व्यक्त होने नहीं दिया। 'युवरानो जी के ये विचार बहुत ही अछे हैं। राजकुमारों के हित में भी आपकी यह माना बहुत ही जरूरी है। मेरे मालिक ने मुझे इसके बारे में भी कुछ नहीं बताया :..." शायद उन्हें भी मालूम नहीं है। हमारी इस यात्रा के बारे में प्रचार न हो, यही महासन्निधान की इच्छा है। इसलिए यह विषय कंचल प्रधानजी को मालूम हैं, ऐसा मैं समझती हूँ। आज शायद दण्ट नायक जी को मालूम हो जाएगी। क्योंकि रक्षक दल को तो साथ चलना होगा न जिन्हें वे भेजेंगे में ही तो साथ 128 :: पमहादेवी शान्तता : भाग को
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy