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________________ पाते हैं। उस ईश्वर का वह छोटा गोलाकार रूप ही बहुत बड़ा दिखाई दे सकेगा। क्योंकि यह सब हमारे विश्वास के परिणामस्वरूप जो कल्पना करते हैं उस पर निर्भर करता है। इसी कारण से हरि, हर और ब्रह्मा, महासती अनसूया को छोटे-छोटे बच्चों जैसे दिखे । प्रवृद्ध आशा-युक्त कलुषित पन के लिए नग्नता अतिरंजित अथवा असाह्य होकर दीखती हैं। परन्तु परिशुद्ध बाल-मन के लिए नग्नता सुन्दर एवं सह्य लगती है। दिगम्बर तत्त्व में यह बाल-मन निहित होने के कारण बाहुबलि की यह मूर्ति बालोचित सुन्दरता से विराजती हुई सह्य लगती है। अनसूया ने जैसे भगवान को देखा और अपने को दर्शाया उसी तरह बाहुबलि स्वामी हमें दिखाई पड़ते हैं। नाम अलग है, सन्निवेश भी भिन्न है। परन्तु इनकी तह में निहित निष्कल्मष भावना नित्य-सत्य है; अनुकरणीय भी है। ऐसी हालत में पृथक् दृष्टि से देखने का अवसर कहाँ?" "सच है । निष्कल्मष भावना ही मूल है। आज आपके कारण हम लोगों में एक नवीन भावना उत्पन्न हुई। हेग्गड़ेजी, मात्सर्य-रहित निष्कल्मष भावना ही के कारण आपके पारिवारिक जीवन के सुख-सन्तोष की नींव पड़ी है। यदि सब लोग आप जैसे हो जाये तो चोल राजा जैसे लोगों के लिए स्थान ही नहीं रहेगा। धर्म के नाम से हिंसा करने के लिए अवसर ही नहीं मिलेगा। सुनते हैं वे भी आप ही की तरह शिवभक्त हैं। फिर भी कितना अन्तर है?" बोकिमय्या ने कहा। "इस तरह के अन्तर का कारण यह समझना है कि हमारा धर्म ही बड़ा है। हमारा विश्वास दूसरों के विश्वास से कम नहीं है, इस तरह का विश्वास होने पर समानता, सहिष्णुता की भावना विकसित होती जाएगी। आज हमें उस तरह की ही भावना की आवश्यकता है।" मारसिंगय्या ने कहा। ___ "इस तरह की भावना सबमें हो, इसके लिए ईश्वर की कृपा होनी चाहिए।" बोकिमम्या ने कहा। बातचीत के इस उत्साह में किसी को समय का पता ही नहीं चला। कृष्ण पक्ष की रात्रि का समय था। सारा आकाश तारामय होकर विराज रहा था। शिशिर की ठण्डी हवा के झोंके क्रमशः अधिकाधिक तीव्र होने लगे । तपा हुआ प्रस्तर शीतल होने लगा। और उस पर बैठे हुए उन लोगों को सरदी का अनुभव होने लगा। "कविजी, बातों की धुन में समय का पता ही नहीं चला। आज हेगगड़ती को और आप लोगों को निराहार ही रहना पड़ा।" "क्षेत्रोपवास भी महान् श्रेयस्कर है । यह कटषप्र पर्वत उपवास व्रत से सायुज्य प्राप्ति करानेवाला स्थान है। इसलिए चिन्ता की कोई बात नहीं। यह अच्छा ही हुआ। परन्तु अब और देर करने से आपके भोजन का समय भी बीत जाएगा। अब चलें।" बोकिमय्या ने कहा। ___आज सोमवार है न? हमें भी भोजन नहीं करना है?" 86 :: पहमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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