SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'मतलब हमें भी सोमवार के निराहार व्रत का फल मिलेगा न, अय्याजी ?" शान्तला ने प्रश्न किया। "हाँ अम्माजी, तुम्हें सदा दोनों तरफ से ही फल मिलता है। जैन शैव धर्मों का संगम बनी हो । मेरी और हेग्गड़ती की समस्त पूजा-आराधना का फल तुम्हारे लिए धरोहर हैं। राजकुमार जी क्या करेंगे पता नहीं।" कहते हुए मारसिंगय्या ने उनकी ओर देखा । 11 "प्रजा को सुख पहुँचाने का मार्ग ही पोय्सल वंश का अनुसरणीय मार्ग है, हेगड़ेजी। राजकुमार होने मात्र से मैं उससे भिन्न पृथक् मार्ग का अनुसरण कैसे कर सकता हूँ ? मुझे भी आप लोगों के पुण्य का थोड़ा फल मिलना चाहिए।" ad 'प्रजा के हित के लिए हम सबके पुण्य का फल पोय्सल वंश के लिए धरोहर । इसके लिए हम तैयार हैं।" मारसिंगय्या ने कहा । कहीं से घण्टानाद सुन पड़ा। बिट्टिदेव और शान्तला में एक तरह का कम्पनयुक्त रोमांच हुआ। उनकी दृष्टि बाहुबलि की ओर लगी थी। अँधेरी रात में चमकते तारों के प्रकाश से बाहुबलि का मुखारविन्द चमक उठा था। वहाँ प्रशान्त मुद्रा दृष्टिगोचर हो रही थी। किसी आन्तरिक प्रेरणा से प्रेरित होकर दोनों ने दीर्घदण्ड प्रणाम किया। द्वारपाल रेविमय्या ने उनको कुतूहलपूर्ण दृष्टि से देखा। कुछ क्षण बाद दोनों उठे । 40 'अब चलें।" कहते हुए मार्ससंगय्याजी भी उठ खड़े हुए। क्या यह कहना होगा कि सबने सम्मति दी ? एक प्रशान्त मनोभाव के साथ सब अपने- अपने शिविर पर वापस आ गये। यह निश्चय हुआ था कि दूसरे दिन बेलुगोल से प्रस्थान किया जाए। बिट्टिदेव को सोसेऊरु लौटना था, अतः निर्णय किया गया कि बाणऊरु तक वह इन लोगों के साथ चलें, फिर जावगल्लु से होकर सोसेऊरु जाएँ। इस निश्चय के बाद आखिरी वक्त शान्तला ने कहा, 'अप्मा जी, सुनते हैं कि शिवगंगा शैवों के लिए एक महान् पुण्यक्षेत्र हैं। यह बात गुरुजी ने कही थी। वहाँ होते हुए बलिपुर जाया जा सकेगा न ?" 11 " पहले ही सोचा होता तो अच्छा था न अम्माजी ! हमारे साथ राजकुमार भी तो आये हैं।" कहकर यह बात जतायी कि अब न जायें तो अच्छा है। मारसिंगय्या ने अपना अभिमत स्पष्ट किया, सलाह का निराकरण नहीं किया था। 14 'आप लोग शिवगंगा जाएँगे तो मैं भी साथ चलूँगा । " बिट्टिदेव ने कहा । 'युवराज को बताकर नहीं आये हैं। यदि आपको सोसेकरु पहुँचने में विलम्ब हो गया तो हमें उनका कोपभाजन बनना पड़ेगा।" EL पट्टमहादेवी शान्तला :: 87
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy