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________________ ही है। प्रत्यं, शिवं, सन्दरं की भारत के शामिद की आ प का रूप जब धारण किया तब वह मानव के स्वार्थ की ओर अनजाने ही अपने-आप परिवर्तित हो गया। इसके फलस्वरूप हिंसा व्यापक रूप से फैल गयी। हिंसा मानवधर्म की विरोधी है। इसीलिए अहिंसा तत्व प्रधान जैन धर्म का आविर्भाव हुआ और मानवधर्म की साधना के लिए एक नये मार्ग का सूत्रपात हुआ। जानते हुए भी हिंसा नहीं करनी चाहिए-- इतना ही नहीं, अनजाने में भी हिंसा अगर हो तो उसके लिए प्रायश्चित करके उस हिंसा से उत्पन्न पाप से मुक्त होने का उपदेश दिया। आशा और स्वार्थ दोनों मानव के परम शत्रु हैं। इन्हें जीतने का मार्ग 'त्याग' मात्र है। यही श्रेष्ठ मार्ग है। यह कोई नया मार्ग नहीं। हमने भारतीय-धर्म की भव्य परम्परा में 'त्याग' को बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान इसीलिए दिया है। अतएव सब कुछ त्याग करनेवाले हमारे ऋषि-मुनि एवं तपस्वी हमारे लिए पूज्य हैं एवं अनुकरणीय हैं। वेद ने भी स्पष्ट निर्देश नहीं दिया कि हमें किसका अनुसरण या अनुगमन करना चाहिए। लेकिन यह कहा-अथ यदि ते कर्म विचिकित्सा वा वृत्ति विचिकित्सा वा स्यात्, ये तत्र ब्राह्मणाः समदर्शिनः, युक्ता अयुक्ताः , अलूक्षा धर्मकामा स्युः, यथा ते । तत्र वर्तेरन, तथा तत्र वर्तेथाः ।' बताया।" "इसका अर्थ वताइए, कविजी।" मारसिंगय्या ने पूछा। "हम जिन कर्मों का आचरण करते हैं, जिस तरह के व्यवहार करते हैं, इसके विषय में यदि कोई सन्देह उत्पन्न हो तो युक्तायुक्स ज्ञानसम्पन्न, सदा सत्कर्मनिरत, क्रूरतारहित, सद्गुणी एवं दुर्गानुसरण करनेवालों के प्रभाव से मुक्त, स्वतन्त्र मार्गावलम्बी ब्रह्मज्ञानी महात्मा जैसे बरतते हैं, वैसा व्यवहार करो, यह इसका भाव हैं।" कवि बोकिमय्या ने कहा। "यह इस बात की सूचना देती है कि हमें किनका अनुकरण करना चाहिए और जिनका अनुकरण किया जाय उनको किस तरह रहना चाहिए, इस बात की भी सूचना इससे स्पष्ट विदित है। है न गुरुजी?" शान्तला ने पूछा। "हाँ, अप्पाजी, जब वे जो अनुकरणीय हैं, युक्तायुक्त ज्ञानरहित होकर सत्कार्य करना छोड़ देते हैं और क्रूर कर्म एवं हिंसा मार्ग का आचरण करने लगते हैं, तब वे अनुकरणीय कैसे बनेंगे? उनके ऐसे बन जाने पर मानव धर्म का वह राज-मार्ग गलत रास्ता पकड़ता है। तब फिर अन्य सही मार्ग को आवश्यकता प्रतीत होने लगती है। उस मार्ग को दर्शानवाले महापुरुष के नाम से लोग उस धर्म को पुकारते हैं, वह नया धर्म बनाता है।" "नये धर्म के नाम से जो ऊधम मचता है वही आपसी संघर्ष का कारण बनता हैं न?'' मारसिंगय्या ने प्रश्न किया। "हाँ, अब देखिए, चोल राज्य में ऐसा संघर्ष हो रहा है, सुनते हैं। वहाँ के राजा शैव हैं। जो शिवभक्त नहीं उन्हें बहुत तंग किया जा रहा है। शैवधर्म को छोड़कर अन्य 80 :; पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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