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________________ +4 'पूछो अम्माजी, किसी भी तरह की शंका को मन में नहीं रहने देना चाहिए। अगर शंका रह जाती है तो वह विश्वास की जड़ को ही उखाड़ देती है।" "ब्रह्मलोक जाने के लिए उद्यत सरस्वती को शंकर भगवत्पाद ने नवदुर्गा मन्त्र से अपने वश में कर लेने की बात पुजारीजी ने कही थी। क्या इस तरह देवी को वश में कर लेना सम्भव हो सकता है? लगाम कसकर अपनी इच्छा के अनुसार जहाँ चाहे चलाये जानेवाले घोड़े की तरह देवताओं को ले जाना सम्भव है ?" शान्तला ने पूछा । 'अपरोक्ष ज्ञानियों की शक्ति ही ऐसी होती है। उनकी उस शक्ति से क्या-क्या साधा जा सकता है, यह कहना कठिन है। जो दुःसाध्य है और जिसे साधा ही नहीं जा सकता वह ऐसे महात्माओं से समा सकता है। यह सांकेतक भी हो सकत हैं। शंकर भगवत्पाद महान् ज्ञानी थे, इसमें कोई सन्देह नहीं। उनका वशवर्ती ज्ञान ही सरस्वती का संकेत हो सकता है। यों समझना भी गलत नहीं होगा। वशीकरण को जाननेवाले जिसे वश में कर लिया है उसे सुना है, चाहे जैसे नचा सकते हैं। ऐसी हालत में सात्त्विक शक्तिसम्पन्न ज्ञानी के वशवर्तिनी होकर ज्ञान की अधिदेवी शारदा रही तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं। साधारण लोग जिसे स्थूल चक्षु से नहीं देख सकते ऐसी मानवातीत अनेक वस्तुओं का ज्ञान चक्षुओं से दर्शन हो सकता है। इसलिए ऐसे विषयों में शंकित नहीं होना चाहिए। इन चर्म चक्षुओं के लिए जो गोचर होता है उतना ही सत्य नहीं हैं। इन चर्मचक्षुओं से हम जितना जो कुछ देखते हैं यह दूसरों से देखा जा सकता है। इससे जो परे हैं वह अविश्वसनीय है, ऐसा नहीं समझना चाहिए। दैवी शक्तियों का विश्लेषण, लौकिक अथवा भौतिक दृष्टि से करना ही उचित नहीं। इसके अलावा इस विषय के लिए कोई आधिकारिक सूत्र नहीं, यह भक्ति का ही फल है, विश्वास का निरूपण है। इसलिए लगाम कसे घोड़े का साम्य यहाँ उचित नहीं। मैंने पहले भी एक बार तुमसे कहा था। मानव- देवताओं की पंक्ति में जैसे हमारे बाहुबलि हैं वैसे ही मानव- देवताओं में शंकर भगवत्पाद भी एक हैं। तुम्हें याद होगा न ?" "हाँ, याद है।" "तो फिर तुम्हें सन्देह क्यों हुआ ?" 11 'मन्त्र बल से देवी वशवर्तिनी न हो सकेगी, इस भावना से।" +4 " मन्त्र निमित्त मात्र है। यहाँ मन प्रधान है। सदुद्देश्यपूर्ण निःस्वार्थ लोककल्याण भावना से प्रेरित सभी कार्यों के लिए देवता वशवर्ती ही रहते हैं। इसी कारण से देवी शंकर भगवत्पाद के वशवर्तिनी होकर उनके साथ चली आयी है।' " आपकी बात सत्य ही होगी, गुरुवर्य । उस दिन वहाँ देवी के सम्मुख जब मैंने नृत्य किया था तब मेरे घुँघुरू के नाद के साथ एक और घुघुरू का नाद मिलकर गतिलीन हो गया था। शारदा देवी जब भगवत्पाद के साथ आती रही, तब सुना है, घुँघुरु का नाद सुनाई पड़ा था। पुजारीजी ने उस दिन जो यह बात कही वह सत्य प्रतीत 76 :: पट्टमहादेखी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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