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________________ हो रही है। परन्तु तब अगर यह बात कहती तो लोग हँसेंगे, यह सोचकर चुप रही।" "देवी के गले से खिसककर जो माला तब नीचे खिसकती आयी उसका कारण अब समझ में आया। पुजारीजी ने जो बात कही, वह सत्य है, अम्माजी । देवी तुमपर कृपालु है। तुम्हें बरदान दिया है।" "बलिपुर से वह स्थान कितनी दूर पर है?" बिट्टिदेव ने पूछा। "तीन-चार कोस होगा। क्यों?" बोकिमय्या ने कहा। "कभी अगर बलिपुर आना होगा तो मैं भी वहाँ हो आ सकूँगा और देवी का दर्शनलाभ पा सकूँगा, इस इरादे से पूछा।" बिट्टिदेव ने कहा। "अभी हमारे साथ्य चल सकेंगे न?" शान्तला ने उत्साह से पूछा। "अब सम्भव नहीं। मुझे आज्ञा नहीं है। मुझे सोसेऊरु लौट जाना है, यह पिताजी को आज्ञा है।" "तो कब आएंगे?" शान्तला ने दूसरा प्रश्न किया। "वैसे हमको राजमहल से अकेले कहीं नहीं भेजेंगे। हमारे गुरुजनों का कभी इस तरपः आने का कार्यमा यो सब उनके कार, माने की सहूलियत हो सकेगी।" ये छोटे, बड़ों के प्रवास के कार्यक्रमों का निर्णय करेंगे भी कैसे ? अनरोक्षित ही अंकुरित इस दर्शनाभिलाषा का अब तो उपसंहार ही करना होगा। बात का आरम्भ कहीं हुआ और अब जा पहँचे और कहीं। अपने से सीधा सम्बन्ध इस बात से न होने के कारण बोकिमय्याजी इसमें दखल नहीं करना चाहते थे। इसलिए वे मौन रहे। उन लोगों ने भी मौन धारण किया। पता नहीं और कितनी देर वे वहाँ बैठे रहे या किसी अन्य विषय को लेकर चर्चा करते रहे कि इतने में रेविमय्या उधर पहुंचा और बोला, "उठिए, उस छोटे पहाड़ पर भी जाना है।" उस मौनावृत स्थान में एक नये उत्साह ने जन्म लिया। सब उठ खड़े हुए। इन्द्रगिरि से भी अधिक आसानी से सब कटवप्र पहाड़ पर चढ़ गये। वहाँ के मन्दिर 'चन्द्रगुप्त बसदि', 'चन्द्रप्रभ' और 'चामुण्डराय बसदि' को देखने के बाद सब आकर एक प्रस्तर पर विश्राप करने बैठे।तब सूर्यास्त का समय हो गया था । सूर्य की लाल सुनहली किरणों की आभा बाहुबलि के मुखारविन्द पर पड़ रही थी और इस आभा ने मूर्ति के मुखारविन्द के चारों ओर एक प्रभावलय का सृजन किया था। शान्तला ने इस प्रभावलय में प्रकाशमान बाहुबलि के मुखारविन्द की पहले-पहल देखा। उसने कहा, "देखिए गुरुजी, बाहुबलि स्वामी के मुखारविन्द पर एक नयी ही प्रभा का उदय हुआ है।" "हाँ अम्माजी, प्रभा से सदा द्युतिमान बाहुबलि स्वामी के मुखारविन्द पर प्रतिदिन सुबह इस तरह की नयी ज्योति उत्पन्न होती है। इस दिगम्बर बाहुबलि स्वामी पट्टमहादेवी शान्तला :: 77
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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