SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वे जब अन्दर चलने लगे तब मौका पाकर अपनी बड़ी बेटी पद्मला को ढकेलकर उनके साथ कर दिया। इन सबके पीछे चामट्या थी। साथ ही हेगड़े मारसिंगय्या और हेग्गड़ती माचिकब्बे भी थे। उन्हें देखकर चामच्या ने माचिकब्धे से पूछा, "हेम्गड़तीजी ने सोसऊरु में यह नहीं बताया कि यहाँ आएँगी।" पूछने में एक आक्षेप ध्वनित हो रहा था। __ हेग्गड़ती माचिकब्बे ने सहज भाव से विनीत हो बताया, "हमने यहाँ आने का विचार ही नहीं किया था। युवरानीजी की आज्ञा हुई, इसलिए आये।" "हेगड़तीजी! आपमें कोई जादू भरा है। नहीं तो युवरानीजी का एक साधारण हेगड़ती के साथ इतना लगाव कैसे सम्भव है?" दण्डनायक की पत्नी ने कहा। कितना व्यंग्य ! इस हेठी के भाव से अनभिज्ञ हेग्गड़ती ने सहज भाव से कहा, "हाँ चामध्याजी, मैं एक साधारण हेग्गड़ती हूँ। पर युवरानीजी की उदारता ने मुझे भी चकित कर दिया है।" "आपके गुन ही ऐसे हैं।" चामव्वा ने कुछ वक्रोक्ति भरी ध्वनि से यह बात कही। "यह सब हम क्या जानें, चामचाजी! बड़ों के दर्शाये मार्ग पर लोक-लीक चलनेवाले हैं, हम। यदि हमारा व्यवहार दूसरों को पसन्द आया और दूसरों ने उसे अच्छा समझा तो वह हमें मार्गदर्शानेवाले उन बड़ों की श्रेष्ठता का ही परिचय देता है। वह उन बड़ों के बड़प्पन का साक्षी है।" "बड़ों का नाम लेकर खिसक जाने की बात छोडिए. हेग्गड़तीजी; खुद आपने अपनी तरफ से अपने पर लादे बड़प्पन की यह बड़ाई है। यह उसी का प्रतीक है। आप मामूलो थोड़े ही हैं।" चामब्बा ने व्यंग्य भरा तीर मारा। माचिकब्बे ने बात बदलने के इरादे से कहा, "युवरानीजी शायद मेरी प्रतीक्षा करती होंगी।" "नहीं, अभी तो वे आपको प्रतीक्षा नहीं करेंगी। उन्हें भी विश्रान्ति चाहिए न? ठहरिए, नौकर को साथ कर दूंगी। वह आपको ठहरने के मुकाम पर ले जाकर छोड़ आएगा।" कहती हुई चामन्चा झटपट चली गयी। औरतों के बीच मारसिंगय्या मौन खड़े रहे। उनके लिए राजमहल नया नहीं था। वहाँ की गतिविधियाँ भी नयो नहीं थीं। वे चुप रहे। दो-एक क्षणों में ही राजमहल का नौकर आया। साथ शान्तला भी आयी थी। "चलिए' कहते वह आगे बढ़ा । शान्तला, माचिकच्चे और मारसिंगय्या तीनों उसके पीछे चले। राजमहल के दक्षिण-पूर्व के कोने के एक अतिथि-भवन में उन्हें छोड़कर यह कहते हुए, "आपके सभी अन्य लोगों को भिजवा दूँगा, आप लोग आराम करें"नौकर चला गया। सभी वहाँ बिछे कालीन पर बैठ गये। नौकर अय-पाध, पान-पट्टी आदि की व्यवस्था कर चले गये। 64 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy