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________________ जा सकता है कि वे दक्ष भी हैं।' 41 "बहुत अच्छा।" महाराजा ने कहा । इसके बाद मरियाने ने सिर झुकाकर प्रणाम किया और चला गया। महाराजा विनयादित्य को लगा कि दण्डनायक सदा की तरह सहज रीति से आज व्यवहार क्यों नहीं कर रहे हैं। इसी चिन्ता में वे पलंग पर तकिये के सहारे पैर पसारकर लेट गये। नूतन वटु कुमार बल्लाल के साथ राजपरिवार दोरसमुद्र पहुँचा। नवोपनीत वदु का भव्य स्वागत हुआ । चामव्वा के उत्साह का कोई ठिकाना ही नहीं था। वर-पूजा करने के लिए सन्नद्ध वधू की माता को सी कल्पना से वह अभिभूत हो गयी थी; इससे उसका मनमुकुल खुशी से विकसित हो रहा था। सोसेऊरु से लौटने पर दण्डनायक और उनकी पत्नी ने परस्पर विचार-विनिमय के बाद खूब सोच-समझकर यह निर्णय किया था कि राजघराने के समधी - समधिन बनें और अपनी बेटी को पट्टमहिषी बनावें । यह निर्णय तो किया परन्तु उस निर्णय को कार्यान्वित करने का विधि-विधान क्या हो - इस सम्बन्ध में कोई निश्चय नहीं किया था। युवराज, युवरानी षटु के साथ आने ही वाले थे; तब प्रधानमन्त्री गंगराज से आप्त- समालोचना करने और कुछ युक्ति निकालने की बात मन में सोचते रहे । परन्तु जब से शान्तला को देखा तब से चामव्वा के मन में वह काँटा बन गयी श्री | उसने समझा था कि बला टल गयी- मगर यहाँ भी शान्तला को देखकर उसकी धारणा गलत साबित हुई। वास्तव में चामव्वा ने यह सोचा न था कि हेग्गड़े का परिवार दोरसमुद्र भी आएगा। वह ऐसा महसूस करने लगी कि हेग्गड़ती ने युवरानी पर कुछ जादू कर दिया है। उसने सोचा कि हेग्गड़ती के मन में कुछ दूर भविष्य की कोई आशा अंकुरित हो रही है। कोई आशा क्या ? वही उस इकलौती बेटी को सजा-धजाकर खुद राजघराने की समधिन बन जाना चाहती है। मेरी कोख से तीन लड़कियों जो जन्मी हैं, तदनुसार युवरानी के भी तीन लड़के पैदा हुए हैं, तो हिसाब बराबर है; ऐसी हालत में यह हेग्गड़ती हमारे बीच कूद पड़नेवाली कौन है? चामव्वा क्या ऐसी स्थिति उत्पन्न होने देगी ? इसलिए उसने पहले से ही सोच रखा था कि परिस्थिति पर काबू पाने के लिए कोई युक्ति निकालनी ही चाहिए। हँसी-खुशी से स्वागत करने पर भी चामव्वा के हृदयान्तराल में बुरी भावना के जहरीले कीड़े पैदा होकर बढ़ने लगे। वटु को युवरानी-युवराज की आरती उतारने के बाद पट्टमहादेवी शान्तला : 63
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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