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________________ अध्यापन के लिए नियुक्त हैं तो भी उन्हें बुला लानेवाले आप हैं, इस कारण आपने उन पर कोई ऐसी शर्त लगायी हो कि आपके आदेशानुसार ही उन्हें चलना चाहिए तो हम आप और उनके बीच में पड़ना नहीं चाहते। उन्हें आए ले जा सकते हैं। परन्तु किसी भी वार का सिर या नहीं। उन्होंने उसी पसल में छेद करने का-सा कोई काम नहीं किया जिसमें उन्होंने खाया है। यह बात समझाने की जिम्मेदारी हमने अपने ऊपर लेकर उन्हें दिलासा दी है। वे भी सीधे आपसे आकर मिलें शायद। उन्हें हमारी आपकी बातों के शिकंजे में फँसाना ही नहीं चाहिए। है न?" परिमाने चुपचाप बैठा सुनता रहा। युवराज को प्रत्येक बात उसी को लक्ष्य में रखकर कही गयी है, यह स्पष्ट समझ गया। पत्नी की लम्बी जबान का प्रभाव इतनी दूर तक पहुंच गया है, इस बात की कल्पना भी वह नहीं कर सका था। परन्तु गलती कहाँ है, इस बात से वह परिचित ही था। इसीलिए उसके समर्थन के कोई माने नहीं, यह भी वह जानता था। इसलिए उसने कहा, "प्रभुजी जो कह रहे हैं वह सब ठीक है। देखनेवाली आँख और सुननेवाले कानों ने गलत राह पकड़ी है, इसीलिए प्रभुजी की बातों को स्मरण रखेंगे और बड़ी सावधानी से बरतेंगे। प्रभु की एक- एक बात विषाददायक होने के साथ उदारता से युक्त भी है, यह स्पष्ट समझ में आ गया। यदि हमने जाने-अनजाने कोई गलती की तो उसे सुधारकर हमें सही रास्ते पर चलाएँ, पोय्सल राजवंश पर जो निष्ठा हममें है वह बराबर अक्षुण्ण रहे, इसके लिए समय.. समय पर मार्गदर्शन कराते रहें, यही मेरी विनीत प्रार्थना है। यही मेरा कर्तव्य है। ज्यादा बातें करना अप्रकृत है। कवि नागचन्द्र को बुलाया ही केवल राजकुमारों के शिक्षण के लिए था। उनपर हमारा अधिकार कुछ नहीं। दण्डनायिका ने गुस्से में आकर बातें की हैं । मैंने उससे कहा भी था कि कवि नागचन्द्र के बारे में हमें कुछ नहीं कहना चाहिए, परिस्थिति के कारण उनको कुछ जल्दी में जाना पड़ा होगा। मैं उसे और भी समझा दूँगा। अब आज्ञा हो तो..." "क्या दोरसमुद्र की यात्रा...?" "जी हाँ।" "यह कैसे सम्भव है ! कल हमारे छोटे अप्पाजी का जन्म-दिन है। साथ ही बड़ी रानीजी की विदाई भी होगी। इसके लिए भोज का प्रबन्ध है। आप परसों जाएंगे बड़ी रानीजी के साथ । वे वहाँ महाराज से मिलेंगो और फिर आगे की यात्रा करेंगी। आप वहीं ठहर सकते हैं।" "जो आज्ञा।" "आज एक बार अपने अवकाश के समय हमारे बच्चों की मैनिक शिक्षा की व्यवस्था देखें और कैसी व्यवस्था की गयी है, सो भी पूछताछ कर लें। कुछ सलाह देनी हो वह भी दें, तो अच्छा होगा।" पट्टमहादेवी शान्ताला :: 303
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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