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________________ का हित बराबर सध सके। वे जितने ही बलवान् होंगे उतना ही अधिक वह हित सधेगा। आपके मन में यदि ऐसी कोई शंका आयी हो तो आपके दोनों पुत्र दोरसमुद्र वापस भेज दिये जाएँगे।" प्रभु एोग नहा। "सन्निधान के पास यह खबर आयी है कि मैंने ऐसा कहा है?" "किसी के नाम का जिक्र हमारे सुनने में नहीं आया। खबर मात्र हमारे सुनने में आयो है। आप महादण्डनायक हैं। ऐसी बातों का इस तरह निकलना अच्छा नहीं, यह आप जानते ही हैं। आइन्दा इस बात का ख्याल रखें कि ऐसी बातें कहीं से न निकलें। इस ओर ध्यान देने में आप सजग रह सकें, इस दृष्टि से मैं कह रहा है।" "हाँ, आइन्दा ऐसी बातें न हों, इसका ध्यान रखना ही होगा।" "अच्छा, हमने सुना है कि राजधानी में कुछ लोगों को इस बात का दुःख है कि हमने अपने प्रस्थान की खबर नहीं दी। हम कब, कहां और क्यों जाते हैं, इन बातों के प्रचार की आवश्यकता नहीं। इस प्रचार से अच्छा-बुरा दोनों हो सकते हैं। बड़ी रानीजी के युद्धभूमि में आने की खबर फैली तो आपने देखा कि वहाँ क्या काण्ड हो गया है। इसीलिए आइन्दा हमारे जाने-आने की पूर्व-सूचना आवश्यक नहीं, और न इस पर किसी को परेशान होने की जरूरत । ये सब व्यक्तिगत बातें हैं, सार्वजनिक वेदी या राजपथ की बातें नहीं । राजा और महादण्डनायक की गतिविधियों का पता, यह आप जानते हैं कि सीमित होना चाहिए। आपने यहाँ आने की खबर भण्डारी को दी थी?" "नहीं, उन्हें क्यों मालूम कराता।" "इसी तरह, जाने-आने की गतिविधियों का पता जिन्हें लगना चाहिए उन्हें समय आने पर ही मालूम कराया जाए। अन्य लोगों को कभी इसकी खबर नहीं देना चाहिए। ठीक है न?" "ठीक है, प्रभजी।" "एक बात और रह गयी। वह कवि नागचन्द्रजी से सम्बद्ध विषय है। अगर उन्हें पहले सूचित करते तो उसकी जानकारी दूसरों को भी हो जाती, इसलिए हमने उन्हें किसी पूर्व-सूचना के बिना अचानक ही पहले यहाँ भेज दिया। ये आपके बहुत कृतज्ञ हैं, इसीलिए उन्होंने, मालूम पड़ा, आपसे कहकर विदा लेने की बात कही थी। इसके लिए उन्हें समय ही नहीं मिला, उन्हें तुरन्त चलने की तैयारी करनी पड़ी। यही नहीं, वे हमारी आज्ञा पर यहाँ आये, उनके वहाँ से चले जाने के बाद ही राजमहल के आवश्यक लोगों को इसकी सूचना दी गयी थी। फिर भी महादण्डनायकजी के घर में उनपर दोष लगाया गया, यह खबर हमें मिली है। उन्हें जानते हुए भी खबर न देने का दोष दिया गया यह सुनकर बेचारे बहुत चिन्तित और दुःखी हो गये हैं। राजकुमारों के शिक्षण के लिए ही वे नियुक्त हुए थे, अतः हमारा यह विचार रहा कि उन्हें अपने साथ रखने के लिए आपकी अनुमति की आवश्यकता नहीं। यद्यपि वे राजकुमारों के 302 :: पट्टमहादेनी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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