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________________ "आज्ञा हो तो हो आऊंगा।" दण्डनायक ने कहा। "आज्ञा ही देनी होती तो आपसे ऐसा पूछने की जरूरत ही क्या थी ? जब हमें जाने के लिए परिस्थिति प्रतिकूल हो तब आप जैसे ही उत्तरदायित्व रखनेवालों को भेजना उचित मानकर हमने आपसे पूछा। यदि आपको कोई महतर कार्य हो तो हम सोचेंगे, किसे भेज सकते हैं।" प्रभु एरेयंग ने कहा। "प्रभुजी का ऐसा विचार करना बहुत ही ठीक है। हमारा अहोभाग्य है कि हमपर इस स्तर का विश्वास आप रखते हैं। फिर भी श्रीमान् महाराज से एक बार पूछ लेना अच्छा होगा। मैं अपनी तरफ से तैयार हूँ।" मरियाने ने कहा। "हाँ, दण्डनायकजी, आपका कहना भी एक दृष्टि से ठीक है। मेरा ध्यान उस तरफ नहीं गया। सचमुच अब आप महाराज के रक्षक बनकर रह रहे हैं। ऐसी हालत में उनकी अनुमति के बिना आपका स्वीकार करना उचित नहीं होगा। यह आपकी दृष्टि से सही है। हम इसके लिए दूसरी ही व्यवस्था करेंगे। इस सम्बन्ध में आपको तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं।" 'जैसी आज्ञा।" "एक बात और आपके पुत्र डाकरसजी ने हमें एक सलाह दी है । राज-परिवार के दामाद हेम्माड़ी अरसजी ने बहुत खुश होकर उत्तम धनुर्धारी होने के कारण बैजरस को बुलाकर उसे 'दृष्टिभेदी धनुर्धारी' की उपाधि से भूषित किया और राजकुमारों को धनुर्विद्या सिखाने का त्याग्रह किया है। क्या करें?" "इसमें मुझसे क्या पूछना । डाकरस की सलाह अत्यन्त योग्य और श्लाघनीय है। खुद ही हेम्माड़ी अरसजी ने बैजरस के हस्त-कौशल की चर्चा उदाहरण के साथ बहुत मनोरंजक ढंग से की थी जितनी जल्दी हो, उन्हें बुलाना चाहिए।" मरियाने ने कहा। . "अच्छा, अब एक-दो वैयक्तिक विषय हैं जिन्हें कहना-न-कहना हमारी इच्छा पर है और जो केवल हमारे और आपके बीच के हैं, केवल अभिप्राय से सम्बन्धित किसी भी तरह से मन में गलत धारणा बैठ गयी हो तो उसका निवारण मात्र इसका उद्देश्य है। आपके बेटों को स्थानान्तरित करने में केवल राज्य के हित की दृष्टि है। हमने इस सम्बन्ध में प्रधान गंगराजजी से एक बार विचार-विनिमय किया था। उन्होंने भी सलाह दी थी। इस सिलसिले में एक बात सुनने में आयी कि महादण्डनायक के बल को कम करने के लिए यह काम किया गया है। यह प्रतिक्रिया राजधानी में हुई। इस तरह की भावना कहाँ से उठी, यह मुख्य विषय नहीं है। ऐसी गलत धारणा क्यों आयी, यह विचारणीय है। कोई राजघराने का विरोधी है, इस बात के प्रमाण मिलने तक उसकी शक्ति कम करने का कोई मन्तव्य नहीं। हमारी धारणा है कि राज-परिवार जिन-जिन पर विश्वास करता है, उन सभी को बलवान होना चाहिए, जिससे राज्य पट्टमहादेवी शान्तला :: 301
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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