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________________ का निवेदन करने की बात सोची, समय की प्रतीक्षा करता रहा। यदि सन्निधान अन्यथा न समझें तो एक निवेदन करना चाहता हूँ! अपनी बड़ी लड़की का बड़े राजकुमार बल्लालदेव के साथ विवाह कर देने की अभिलाषा करता हूँ। सन्निधान मेरी इस प्रार्थना को उदारता से स्वीकार कर अनुग्रह करें।" "दण्डनायकजी, यह अच्छा हुआ कि आपने अपनी इच्छा बता दी। साथ ही समय-असमय की भी बात कही। वह भी ठीक है। इस विषय पर विचार का समय अभी नहीं आया। यह हमारी राय है। राजकुमार के लिए अब विवाह से अधिक आवश्यक बात यह है कि वे भावी जिम्मेदारी को संभालने लायक योग्यता प्राप्त करें। आप ही ने कई बार कहा भी था कि उनका स्वास्थ्य सन्तोषजनक नहीं है। इधर कुछ दिन से स्वास्थ्य सुधर रहा है, पण्डित चारुकीर्तिजी की चिकित्सा के कारण । वास्तव में हमें आपसे कुछ छिपाने की जरूरत नहीं है । हमें कुछ समय पूर्व इस बात की चिन्ता हो गयी थी कि कम-से-कम बौद्धिक दृष्टि से तो सिंहासन पर बैठने योग्य भी कुमार बनेंगे या नहीं। इस बात का दुःख रहा हमें। अब आपके द्वारा प्रेषित कवि के समर्थ दिशादर्शन और शिक्षण के कारण उनमें उत्साह और आसक्ति के भाव जगे हैं। इससे हमारे मन में यह भावना आयी है और हम आशा करते हैं कि वे सिंहासन पर बैठने योग्य बनेंगे। इससे हमारा मन कुछ निश्चिन्त हुआ है। ऐसे समय विवाह की बात उठाकर उनके मन को आलोड़ित करना अच्छा नहीं है। कम से कम और तीन साल तक शिक्षण की ओर ध्यान देना उनके लिए हम आवश्यक मानते हैं। आप पहादण्डनायक की हैसियत से हमसे सहमत होंगे, यह हमारा विश्वास है। अभी इस प्रसंग में बात नहीं उठाना ही उचित है। बाद में यह बात सोचेंगे।" "सन्निधान की आज्ञा है तो तब तक प्रतीक्षा करूँगा।" "इस सम्बन्ध में हम कुछ नहीं कह सकेंगे। निर्णय आएका । विवाह कभीकभी हमारी इच्छा के अनुसार नहीं होते। इसीलिए योग्य वर मिले, उचित अवसर भी आ जाए तभी विवाह करना उचित है। किसी भी बात पर अधिक विचार न करके हमारी बेटी केलेयल देवी का हेम्माड़ी अरस के साथ एक विशेष मुहूर्त में विवाह कर दिया गया था, विवाह के अब आठ वर्ष बीत गये। आपको मालूम है न?" मरियाने को आगे बात करने के लिए कोई मौका ही नहीं रह गया। एक तरह से वह निराश हुआ। परन्तु उसने प्रकर नहीं होने दिया, 'ठीक हैं' कहकर चुप हो गया। इसके बाद प्रभु ऐयंग ने कहा, "दण्डनायकजी! बड़ी सनीजी को कल्याण भेजना है। चालुक्य चक्रवर्तीजी अस्वस्थता के कारण आ नहीं सकते। यों तो मेरा आना ही उचित है और संगत भी। परन्तु, इधर उत्तर की ओर रहने के कारण दो वर्ष में यहाँ की स्थिति बदल गयी है। यहीं रहकर परिस्थिति पर निगरानी रखकर कुछ देखभाल करना आवश्यक हो गया है। इसलिए आप जा सकेंगे?" प्रभु ने पूछा। 300 :. पट्टमहादेवी शान्रला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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