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________________ "रास्ते में बलिपुर में रुक गया है, कल आएगा।" "हेग्गड़ेजी बलिपुर में थे?" "नहीं।" "होते तो अच्छा होता।" "रेविमथ्या आएगा तो मालम हो जाएगा। मैं कह आया है। लौटते समय बड़ी रानीजी को वहाँ एक रात ठहरना पड़ेगा। हेगड़ेजी आ जाएँ तो यह सूचित करें कि वे अन्यत्र न जाएँ, बलिपुर में ही रहें।" "ऐसा किया, अच्छा हुआ। परन्तु चक्रवर्ती के अस्वस्थ रहने की बात सुनकर हेग्गड़ेजी बहुत चिन्तित होंगे। आप लोगों के बहाँ पहुँचने तक उनकी चिन्ता दूर नहीं हो सकती। क्या करें, दूसरा चारा नहीं। ठीक है, नायक, अब तुम जा सकते हो। तुम्हें वस्तुस्थिति मालूम हो गयी है न? कहाँ कब क्या कहना, क्या नहीं कहना, यह याद रखना।" प्रभु एरेयंग ने कहा। "जो आज्ञा ।" कहकर प्रणाम कर चलिकेनायक चला गया। अब का नायक और था, पहले का और था ! सुख-द:ख मारन के स्वरूप को ही बदल देता है, एरेयंग ने यह बात नायक के चेहरे पर स्पष्ट देखी। "अब तक बड़ी रानीजी की उपस्थिति के कारण अन्तःपुर भरा हुआ लग रहा था। अन्न उनके जाने के बाद मुझे तो सूना ही लगेगा।' युवरानी एचलदेवी बोली। "सूना क्यों लगना चाहिए? घर भर लीजिए। आपके बड़े राजकुमार विवाहयोग्य तो हो ही चुके हैं।" चन्दलदेवी ने कहा। "वह तो किसी दिन होगा ही, होना ही चाहिए। परन्तु कैसी लड़की आएगी यह नहीं मालूम मुझे।" युवरानी एचलदेवी ने कहा। "यह बात मैं नहीं मानती। बड़े दण्डनायकजी की बड़ी लड़की ने, सुना है, बड़े राजकुमार का मन हर लिया है।" "वह जोड़ी ठीक बन सकेगी, बड़ी रानीजी?" युवरानी एचलदेवी बोली। उनकी ध्वनि में कुछ आतंक की भावना थी। "आपके पास आने पर सब ठीक हो जाएगा। आप शत्रु को भी जीत सकती हैं।'' चन्दलदेवी बोली। "मुझे बल्लाल के ही बारे में अधिक चिन्ता है। हमारा सौभाग्य है कि अब वह ठीक बनता जा रहा है।" "तो क्या बाकी बच्चों के बारे में चिन्ता नहीं है ?" __ "बिट्टि के बारे में मुझे चिता नहीं। उदय अभी छोटा है, उसके बारे में चिन्तित होने का अभी समय नहीं आया है।" "तो क्या आप किसी निर्णय पर पहुँच गयी हैं ?" पट्टमहादेनी शान्तला :: .07
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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