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________________ "मुझे मालूम है कि कुछ बातें मैं न रोक सकती हूँ न टाल ही सकती हूँ। इसीलिए उनसे समझौता ही कर लेना चाहिए।" "तात्पर्य यह कि अनहित से भी हित की साधना करना आपका लक्ष्य है।" "हमसे किसी का अनहित नहीं होना चाहिए । इतना हो अभीष्ट है।'' ।हमसे यह साधना नहीं हो सकती।" । ''ऐसा क्यों कहती हैं ? अच्छाई का काम कोड भी कर सकता है।" "सच है। लेकिन जिसे देखकर दूसरे लोग. आपन में झगड़ा करें, ऐसे मेरे सौन्दर्य ने कौन सा हित साधा।" "इसका उत्तरदायित्व आप पर नहीं हैं, वह तो मनुष्य को एक नीचता है, सबकुछ अपना ही समझने का स्वार्थ । परन्तु इसा झगड़े ने हम लोगों में आत्मीयता पैदा कर दी है। आपका रूप-सौन्दर्य ही इस आत्मीयता का कारण है।" "यही मैं भी कह रही हैं. पही है अमित में भी हि । अब तक युवराज रेयंग प्रभु चपचाप बैठे सुन रहे थे, अब बोले, "एसे ही छोड़ दें तो आप लोगों की बातें कभी समाप्त नहीं होंगी। बड़ी रानोजों को यात्रा का अन्न और अधिक दिन तक स्थगित नहीं किया जा सकता। हम उसके लिए उपयुक्त समय निश्चित करेंगे, कल रेविमय्या और दण्डनायक के आनं पर । आप अब विराट की रस्म की तैयारी करें।' मरियाने दण्डनायको विवाह सम्बन्धी बात करने आनेवाले हैं ?' चन्दलच्या मीधा सवाल किया। "न न, वह बात अभी सोचने को नहीं है। उसकी अभी क्या जल्दों है?'' कहकर ज्यादा बात करने का मौका न देकर प्रभु परेयंग चले गये। "तां यह सम्बन्ध युवराज को पसन्द नहीं है ?" चन्दलदेवी ने एचालदेवों से पृछा। "बातों से तो एसा ही लग रहा है। इससे मुझे दोनों तरफ की चिन्ता करनी पड़ रही हैं। उधर अप्पाजी के विचार भिन है, प्रभुजी के विचार बिल्कुल अलग, यह सब स्पार हो गया है। समय ही इस स्थिति को बदल सकता है । इन दोनों में से किसी एक के मन को तो बदलना ही होगा।" "जब मैंने यह बात छेड़ी तब युवराज कुछ नहीं बोले। इससे मैं समझ बैठी थी कि इस सम्बन्ध में उनके विचार अनुकूल है। यह जानती होती कि उनके विचार प्रतिकूल हैं तो मैं यह सवाल नहीं उठाती, शायद न उठाना ही अच्छा होता।'' चन्दलंदवी ने परेशान होकर कहा। "गूछ लिया तो क्या हो गया? यह मामला ही कुछ पेचीदा है। यह उलझन सुलझान का भार भी मुझी का होना होगा। यह सर्वथा निश्चित है। आपको नशान 2-1 :: पट्टमहादको शानना
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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