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________________ बड़ी रानी बैठीं। नायक से भी बैठने को कहा। युवरानी भी बैठ चुकी थी, पर नायक खड़ा ही रहा। "इसे दो-दो बार कहना पड़ता है, पहले भी इसने यही किया।" प्रभु एरेयंग ने कहा। नायक कुछ कहे बिना बैठ गया। जो पत्र यह स्वयं लाया था उसे दिखाते हुए प्रभु एरेयंग ने पूछा, "यही है न वह पत्र जो तुम लाये हो?" "हाँ।" "बड़ी रानीजी की इच्छा है, इस पत्र को तुम ही पढ़कर सुना दो, इसीलिए तुमको बुलाया है।" कहते हुए प्रभु एरेयंग ने पत्र उसकी ओर बढ़ाया। चलिकेनायक ने आकर पत्र हाथ में लेकर बड़ी रानी की ओर देखा। "नयों नायक, पढ़ोगे नहीं?" एरेयंग ने पूछा। "यह तो प्रभु के लिए प्रेषित पत्र है। मेरा पढ़ना...?" इससे उसका मतलब था कि अप्रिय वार्ता उसके अपने मुंह से न निकले। "हम ही कह रहे हैं न, पढ़ने के लिए, पढ़ो।" प्रभु ने कहा पत्र खोलकर आरम्भिक औपचारिक सम्बोधन के भाग पर नजर दौड़ायी। इसके बाद उसकी नजर पत्र की अन्तिम पंक्ति पर लगी। पत्र छोटा था। उसकी सारी चिन्ता क्षण-भर में गायब हो गयी। "मुझे भी फिर से पढ़ना होगा?" नायक ने पूछा। "तुमको समाचार मालूम हो गया न, बस। इधर लाओ।" प्रभु ने हाथ बढ़ाया। नायक ने पत्र लौटा दिया। " यह पत्र तुमने पढ़ा नहीं, नायक। अब मालूम हुआ।" "मालूम हो गया, मालिक।" "तुमको फिर बड़ी सनीजी का रक्षक बनकर जाना होगा।" "जो आज्ञा।" "नायक। लौटते समय तुमने सन्निधान का दर्शन किया था या नहीं?" चन्दलदेवी ने पूछा। "पहली बार जब दर्शन किया तो कहा कि चलेंगे पर कुछ देरी होगी। तब तक रहो। फिर दो दिन बाद मिलने गया तब भी सन्निधान ने यही कहा। परन्तु रेबिमय्या के आकर पूछने पर 'अब दर्शन नहीं हो सकता, स्वास्थ्य अच्छा नहीं।' कह दिया, और बताया कि आज्ञा हुई है कि अब दर्शन नहीं दे सकते, यह एक पत्र तैयार रखा है, इसे ले जाकर अपने युवराज को दे देना।' अमात्य राविनभट्ट दण्डनायकजी ने बताया कि बड़ी रानीजी को शीघ्र इधर ले आने की व्यवस्था कराएं। हम इधर चले आये।" "तो रेविमय्या कहाँ है, वह तो दिखा नहीं?" प्रभु एरेयंग ने पूछा। 291 :: पदपहरदेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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