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________________ थी इसके सन्दर्भ में इस वक्त उससे मिलना ठीक न समझकर मैंने ही मना किया था। सचमुच हमें भी इससे कुछ चिन्ता हो गयी थी।" "किसी सम्भावित भारी दुःख का निवारण हो गया।'' कहती हुई एचलदेवी उठ खड़ी हुई। "क्यों?' चन्दलदेवी ने पूछा। "एक दीया बी का जला भगवान् को प्रणाम करके आऊँगी।" कहकर एचलदेवी निकली। चन्दलदेवी ने "मैं भी चलती हूँ।" कहकर उसका अनुगमन किया। इधर क्षण में ही चलिकेनायक आ गया। इस बुलावे के कारण वह घबड़ा गया और पसीना-पसीना हो गया। यात्रा की थकावट, असन्तोषजनक बासी, र आने का यह बुलावा, इन सब बातों ने मिलकर उसमें कम्पन पैदा कर दिया था। नायक ने युवराज को प्रणाम किया। "बैठो नायक।" "रहने दीजिए," कहकर पूछा, "इतनी जल्दी में बुलाया?" "हौं, तब जल्दी थी, अब नहीं। इसीलिए बैठने को कहा है।" नायक की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे । वह टकटकी लगाकर देखता रह गया। परन्तु बैठा नहीं। "क्यों नायक, बहरे हो गये हो क्या?" "नहीं, ठीक हूँ, प्रभु।" "तो बैठे क्यों नहीं, बैठो।" वह सिमटकर एक आसन पर बैठ गया। प्रभु एरेयंग कुछ बोले नहीं, नायक प्रतीक्षा करता बैठा रहा। जिसपर बैठा था वह आसन काँटों का-सा लग रहा था। कब तक यों बैठा रहेगा?"हुकुम हुआ, आया, क्या विषय है" उसने पूछना चाहा, बात रुकी। "जिन्होंने बुलाया है उन्हें आने दो। तब तक ठहरो, जल्दी क्यों?'' उसे कुछ बोलने का अवसर ही नहीं रहा। मौन छाया रहा। कुछ ही क्षण बाद बड़ी रानी और युवरानी घी का दीया जलाकर प्रणाम करके लौटीं। नायक ने उठकर उन्हें प्रणाम किया। "क्यों, नायक, अच्छे हो?" चन्दलदेवी ने पूछा। बड़ी रानी चन्दलदेवी को देखने से उसे लगा कि उन्हें अभी चक्रवर्ती की अस्वस्थता की खबर नहीं मिली होगी। उसने सोचा, यह अप्रिय समाचार सुनाने की जिम्मेदारी मुझी पर डालने के इरादे से इस तरह बुलाया है, इससे वह और भी अधिक चिन्ता-भार से दब गया, बोला, "हाँ, अच्छा हूँ।" पट्टमहादेवी शान्तलः :: 205
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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