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________________ स्वास्थ्य सुधर चुका होगा, ऐसा विश्वास करें। हमें बिना कारण घबड़ाने की जरूरत नहीं। मैं खुद आपके साथ चलकर आपको चक्रवती के हाथ सौंपकर आऊँगी, आप चिन्ता न करें।" युवरानी एचलदेवी ने कहा। "नायक कहाँ है?" चन्दलदेवी ने पूछा। "मिलना चाहें तो बुलाऊँ।" प्रभु एरेयंग ने कहा। "यदि वहाँ से रवाना होने से पहले वे सनिधान से प्रत्यक्ष मिले हों तो बुलाइए।" "गालब्बे, बाहर लेंक खड़ा है। किसी को भेजकर चलिकेनायक को बुला लाने को कहो।" एरेवंग प्रभु ने कहा। चन्दादेवी ने पूछा, "हम नारामा ने सामाई गण मग धुन धबड़ाहट महसूस करने लगा क्या?" "हमने इतने विस्तार से नहीं देखा-पूछा। इसलिए इतना ही कहकर कि 'ठीक है' हम उस पत्र को लेकर इधर चले आये। अभी पत्र पढ़ा नहीं है। बड़ी रानीजी के समक्ष ही पढ़ना उचित समझकर हमने अविलम्ब नहीं पड़ा।" कहकर फरमान की मुहर खोली। बड़ी रानी और एचस्लदेवी देखने के लिए जरा आगे झुकी। एरेयंग प्रभु ने स्वस्तिश्शी आदि लम्बी विरुदावली पर नजर दौड़ायी और फरमान पढ़ना शुरू किया "धासनगरी पर विजय प्राप्त कर बड़ी रानी को सुरक्षित रखकर आपने जो कार्य दक्षता से किया है, इससे बहुत सन्तोष हुआ। इस खुशी के समय अपनी इच्छा से आगे से, पोय्सल-वंश-त्रिभुवन-मल्ल यह चालुक्य-विरुद भी आपकी विरुदावली के साथ सुशोभित हो, यह हम इसी फरमान के द्वारा सूचित करना चाहते हैं। यहाँ का राजनीतिक वातावरण भाई जयसिंह के कारण कलुषित हो गया है। इसे प्रकट करना ठीक नहीं, फिर भी आप पर हमारा पूर्ण विश्वास है अत: आपको बताया है। इस वजह से फिलहाल हम दोरसमुद्र की ओर आने की स्थिति में नहीं हैं । नुकसान तो हमारा ही होगा। बड़ी राजनीजी को जितनी जल्दी हो सके कल्याण भिजवाने की व्यवस्था करें। यहाँ की राजनीतिक हलचल को वहाँ के आम लोगों के लिए साधारण बातचीत का विषय नहीं बनना चाहिए। इसलिए नायक को बताया है, स्वास्थ्य अच्छा नहीं।" बड़ी रानी का हाथ अनायास ही गले पर के मांगल्य-सूत्र की ओर गया। एक दीर्घ श्वास लेकर कह उठी, "एक ही क्षण मन में क्या सब हो गया!" चन्दलदेवी का मन स्वस्थ हो गया था। "अब बड़ी रानी के मन में इस एक ही क्षण में जो सब हो गया वहीं इस देश के दाम्पत्य जीवन का संकेत हैं।" युवरानी एचलदेवी ने कहा। 'बिना कारण बेचारे नायक के विश्राम में बाधा डाली।" बड़ी रानी ने कहा। "वह भी बड़ी रानीजी से मिलने के लिए उतावला था। उन्होंने जो खबर सुनायीं 294 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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