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कार्य हैं। हम केवल उनके अनुयायी हो तो हैं।"
"सो तो ठीक है। वास्तव में हम आपके कृतज्ञ हैं। यदि आप लोग राजकुमार के उपनयन के सन्दर्भ में नहीं आये होते तो मेरी बच्चियां मेरी तरह खा-पीकर मोटीझोटी बनकर बैठी रहतीं। आपकी बेटी की होशियारी, बुद्धिमत्ता, शिक्षा-दीक्षा आदि देखकर वे भी ऐसी ही शिक्षा पाने और बुद्धिमती बनने की इच्छा करने लगी। उनके शिक्षण की व्यवस्था हुई। हमारी चामला को तो आपकी बेटी से बहुत लगाव हो गया है। दिन में एक-दो बार उसके बारे में बात करती ही रहती है।" ___ "शान्तला भी आपकी दूसरी बटों की याद करती रहती है। उसका तो यह अपनी दीदी ही समझती है। आपकी बड़ी बेटी इतनी मिलनसार नहीं दीखती।"
"क्या करें, उसका स्वभाव ही ऐसा है। वह ज्यादा मिलनसार नहीं है।' "हमारी लड़की भी कुछ-कुछ ऐसी ही है।" "फिर भी वह होशियार है। वह परिस्थिति को अच्छी तरह समझ लेती है।" "ये सब प्रशंसा की बातें हैं। उसकी उम्र ही क्या है?" "हमारी पदाला की ही तरह हष्ट-पुष्ट है, वह भी।"
"शरीर के बढ़ने मात्र से मन का विकास थोड़े ही होता है, वास्तव में हमारी शान्तला आपकी दूसरी बेटी से एक साल छोटी है।"
"आप भी खूब हैं, हमारी बच्चियों की उम्र का भी आपने पता लगा लिया। ठीक ही तो है, कन्या के माता-पिता की पड़ोसी की बच्चियों पर भी आँख लगी रहती हैं।"
"पिछली बार जब मैं यहाँ आयी थी तब आप ही ने तो बताया था। इसलिए मुझे मालूम हुआ। नहीं तो दूसरों की बातों में हम दखल क्यों दें?"
"ठीक है। मुझे स्मरण नहीं रहा। लड़की बड़ी होती जा रही है। कहीं इसके लिए योग्य वर की खोज भी कर रही हैं कि नहीं?"
"फिलहाल हमने इस सम्बन्ध में कुछ नहीं सोचा चामव्वाजी।"
"फिलहाल शादी न भी करें, फिर भी किसी योग्य वर की ताक में तो होंगी ही। वर खोज किये बिना बैठे रहना कैसे सम्भव है? इकलौती बेटी है, अच्छी तरह पालपोसकर बड़ा किया है। साधारण लोगों के लिए जो जरूरी नहीं उन सब विद्याओं का भी शिक्षण दे रही हैं उसे आप। यह सब देखने से ऐसा लगता है कि कहीं कोई भारी सम्बन्ध आपकी दृष्टि में है।"
"जो वास्तविक बात है उसका मैंने निवेदन किया है। आप पता नहीं क्या-क्या सोचकर कहती हैं, मैं इस सबका उत्तर दे नहीं सकती, चामव्याजी।"
__"भारी सम्बन्ध की खोज करने में गलती क्या है ? माता-पिता की यह इच्छा स्वाभाविक ही है कि उनकी बेटी अच्छी जगह सुखी होकर रहे।"
"फिर भी सबकी एक सीमा होती है, चामध्धाजी।"
पट्टमहादेवी शन्तला :: 275