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________________ "हाँ, वह तो है ही। अच्छा, मैं चलूँ। सब तैयार हो जाने पर मैं नौकर के द्वारा खबर भेज दूंगी।" युवरानी और बड़ी रानी को इस न्यौते का समाचार मालूम हुआ। इसमें उन्हें कुछ आश्चर्य भी हुआ। फिर भी सद्भावना का स्वागत करना उनका स्वभाव था। इसलिए उन्हें एक तरह से असमंजस ही लगा। परन्तु युवरानी की समझ में यह नहीं आया कि दण्डनायक और उसकी पत्नी ने राजकुमारों से न्यौता कैसे और क्यों स्वीकार कस लिया। युवरानी एचलदेवी ने सोचा, जो भी हो, अब तो इस राजधानी से ही छुटकारा मिल जाएगा। चामव्वा ने बहुत अच्छा भोज दिया। चामन्चे ने हेगड़ती पाचिकब्बे से पृछा, "स्त्रियों के लिए और पुरुषों के लिए व्यवस्था अलग-अलग रहे था एक साथ ?" माचिकब्बे ने कहा, "दण्डनायकजी मान लें तो व्यवस्था अलग करने की शायद आवश्यकता नहीं। यह आप पर है, चामन्चाजी।" ___ चामचे भी यही चाहती थी। पाँच-पाँच की दो कतारें बनी थीं, एक स्त्रियों की, दूसरी पुरुषों की, आमने-सामने। छोटे राजकुमार उदयादिस्य ने शान्तला के पास बैठने की जिद की। आखिरी वक्त पर, इसलिए चामला को बिट्टिदेव के पास बैठना पड़ा। रंगोली के रंग-बिरंगे चित्रों के बीच केले के पत्तों पर परोसा गया भोजन सबने मौनपूर्वक किया। बल्लाल कुछ परेशान दिख रहा था। सचमुच वह पद्मला की दृष्टि का सामना नहीं कर पा रहा था। उससे मिले एक पखवारा हो चुका था। वास्तव में बात यह थी कि उसने उसके बारे में सोना तक नहीं था। परन्तु अब वह अपने को अपराधी मान रहा था। उसके मन में कुछ कशमकश हो रही थी कि आज कुछ अनिरीक्षित घटना घटेगी। उसे यह बात मालूम थी कि पद्मला स्वभाव से कुछ हठीली है। उसका वह स्वभावं ठीक है या नहीं, इस पर विमर्श करने को ओर उसने ध्यान नहीं दिया था। जिद्दी होने पर भी वह उसे चाहता था, मन से दूर नहीं रख सकता था। उसके दिल पर पद्मला का इतना गहरा प्रभाव पड़ा था। पद्मला ने भी भोजन करते समय बल्लाल को अपनी तरफ आकर्षित करने का प्रयत्न किया था। परन्तु उस समय उसने अपनी दृष्टि को पत्तल पर से इधर-उधर नहीं हटाया। ___ दण्डनायक और चामव्वा ने बहुत आजिजी के साथ मेजबानी की 1 हेग्गड़े दम्पती इस तरह के सत्कार-भरे शब्दों के आदी नहीं थे। उनके इस सत्कार से इनका संकोच बढ़ गया था। सत्कार के इस आधिक्य के कारण भोजन भी गले से नहीं उतर रहा था। हेगाड़ेजो ने सोचा था कि मरियाने दण्डनायक की पहली पत्नी के पुत्र माचण 2.? :: गट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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