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________________ जानकारी हो गयी है। शेष दो प्रासों के लिए उदाहरण पठित भाग से स्मरण कर बताओगे, क्यों बड़े राजकुमाराजी?" कवि नागचन्द्र ने बल्लाल से ही सवाल किया। बल्लाल ने कुछ सोचने का-सा प्रयत्न करके कहा, "कोई स्मृति में नहीं आता।" बिट्टिदेव की ओर देखकर पूछा, "आपको?" "ग्रन्थारम्भ में एक पद्य है, 'वत्सकुल तिलक' आदि। इसमें शरभ प्रास लगता है।" बिट्टिदेव ने कहा। "लगता क्यों, निश्चित रूप से कहिए कि यह शरभ प्रास है। अब शेष रह गया 'अज प्रास'। उसका लक्षण मालूम है न?" "प्रासाक्षर के पीछे विसर्ग होना चाहिए।" बल्लाल ने कहा। "उदाहरण बताइए।" थोड़ी देर मौन रहा। किसी ने कुछ कहा नहीं। "अम्माजी, तुळं कुछ याद है?" नागचन्द्र ने पूछा। "नहीं गुरुजी, जब मुझे पढ़ाया गया तब किसी पूर्व-रचित पद्य का उदाहरण न देकर मेरे गुरुजी ने स्वयं पद्म रचकर उसके स्वरूप का परिचय दिया था। परन्तु वह मुझे याद नहीं।" शान्तला ने कहा। "सच है। अज प्रासवाले पद्म बहुत विरले ही मिलते हैं। मुझे भी तुरन्त स्मृति में नहीं आ रहा है । याद करके कल बताऊँगा। नहीं तो तुम्हारे गुरु की तरह मैं भी स्वयं एक पद्य की रचना करके सुनाऊँगा। परन्तु काव्य-रचना में इस प्रास का प्रयोग बहुत ही विरला होता है, नहीं के बराबर," नागचन्द्र ने कहा। "ऐसा क्यों?" बल्लाल ने पूछा। "विसर्ग-युक्त शब्द व्यवहार में बहुत कम हैं, इसलिए ऐसा है। अच्छा, आज का पाठ पर्याप्त प्रमाण में हुआ। अनेक उदात्त विचारों पर चर्चा भी हुई। कल से तीन दिन अनध्ययन है, इसलिए मैं नहीं आऊँगा।" "तो हमें भी अध्ययन से छुट्टी मिली।" बल्लाल ने कुछ उत्साह से कहा। "वैसा नहीं। अनध्ययन का अर्थ है नये पाठ नहीं पढ़ाना, तब भी पठित पाठ का अध्ययन और मनन तो चलता ही रहना चाहिए। इसलिए अब तक पठित विषयों का श्रद्धा से अध्ययन करते रहें।" शिष्यों ने साष्टांग प्रणाम किया। आज के प्रणाम की रीति वैसी थी जैसी ब्राह्मी और सौन्दरी को बतायी गयी थी। नागचन्द्र चला गया। रेबिमय्या आया, बोला, "अप्पाजी, युवरानीजी ने आपको अकेले आने को कहा है।" "सो क्यों?" बल्लाल ने पूछा। पट्टमहादेवी शान्तला :: 265
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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