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________________ "सो मुझे मालूम नहीं। आज्ञा हुई सो मैं आया।" रेविमय्या ने कहा। बल्लाल माँ के दर्शन के लिए चला गया। रेविमय्या, विष्टिदेव और शान्तला को दुनिया अलग ही बन गयी। बेटे के आगमन की प्रतीक्षा करती हुई एचलदेवी सोच रही थी कि उससे बात शुरू कैसे करे । वास्तव में कवि नागचन्द्र ने जो बात कही थी उसे सुनकर वह बहुत दु:खी थी। उस लड़की की उपस्थिति से इसे परेशान होने का क्या कारण हो सकता है ? बहुत गम्भीर स्वभाव की लड़की है वह; होशियार और इंगितज्ञ । मुझे वह और उसके मातापिता आत्मीय और प्रिय हैं, यह बात जानते हुए भी इस अप्पाजी की बुद्धि ऐसी क्यों, क्यों, क्यों ? यह दूसरों के द्वारा जबरदस्ती सिखायी गयी बुद्धि है। इसे अभी जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए। उसने निश्चय किया कि अबकी बार से अपने सभी बच्चों को वह अपने ही साथ रखेगी। यह निर्णय वह अपने स्वामी को भी बता चुकी थी। इन नये गुरु को भी वहीं साथ ले जाने का निश्चय कर चुकी थी। यहाँ अब थोड़े दिन ही तो रहना है। इससे इस चामचे के उपदेशों से बच्चों को दूर रखने का काम भी सध जाएगा। इसलिए अब किसी के मन को आघात न लगे, ऐसा व्यवहार करना चाहिए। वह बात शुरू करने के दंग पर सोच ही रही थी कि बल्लाल आ गया। बोला, "माँ, आपने मुझे बुलाया था?" "हाँ, आओ, बैठो। पढ़ाई समाप्त हुई?" "हाँ, समाप्त हुई।" "मैंने तुम्हारे गुरु के बारे में कभी नहीं पूछा। वे कैसे हैं?" "बहुत अच्छे हैं ?" "पढ़ाते कैसे हैं ?" "अच्छा पढ़ाते हैं।" "मैं सुनती हूँ कि तुम कभी-कभी पढ़ाई के समाप्त होने सक नहीं रहते हो?" "कौन, छोटे अप्पाजी ने शिकायत की?" "वह तुम्हारे बारे में कभी कोई बात नहीं करता।" "तो उस हेग्गड़ेजी की बेटी ने कहा होगा?" "बह क्यों कहने लगी, क्या तुम दोनों में झगड़ा है?" "नहों, वास्तव में उसने मुझसे कभी बात की हो, इसका स्मरण नहीं।" "ऐसी हालत में उस पर तुम्हें शंका क्यों पैदा हो गयी?" "छोटे अप्पाजी ने उसके द्वारा कहलाया होगा?" 266 :: पट्टमहादेवी सान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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