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________________ यह कैसे सम्भव हुआ।" बल्लाल ने प्रश्न किया। " इसमें कोई एक कवि का स्वयं का लिखा है और दूसरा किसी नकल करनेवाले ने उसी को बदलकर लिख दिया है।" "ऐसा करना गलत हैं न?" शान्तला ने पूछा । "हाँ, अम्माजी, ऐसा करना गलत हैं। परन्तु यह सब वैयक्तिक वक्रता है, क्षम्य है। इस वक्रता से अर्थ बदला नहीं है न । परन्तु कुछ जगह कविता में इसकी वक्रता के कारण मूल के बदल जाने का प्रसंग भी आ जाता है, वह काव्यद्रोह है।" "ऐसा भी हुआ है ?" बिट्टिदेव ने पूछा। "ऐसा भी दु है, राजकुमाल में एक पद्य है जिसमें युद्ध भूमि में अपने माता-पिता से दुर्योधन कहता है, फल्गुन और पवनसुत को समाप्त कर कर्ण और दुःशासन की मृत्यु का प्रतिकार करके निर्दोषी धर्म के साथ मिलकर चाहे तो राज्य करूंगा। इस पद्य का अन्तिम चरण कवियों के हाथ में पड़कर, 'निर्दोषिगलिक्के यमजनोलघुदुवालें' हो गया जिससे उसका अर्थ ही बदल गया, यमज यानी धर्म निर्दोषी होने पर भी उससे मिलकर राज्य नहीं करूँगा। वास्तव में यह पंक्ति स्न ने मूल में यों लिखी होगी, 'निर्दोषि बलिक्के यमजनोल पुदुवालवें।" इसका अर्थ है, फल्गुन और पवनसुत को समाप्त करने के बाद धर्म के साथ मिलकर राज्य करूँगा। यह रन्न कवि से दुर्योधन की रीति हैं। इसलिए अन्य कवियों के हाथ में पड़कर बदले हुए रूप का परिशोधन करके ही काव्य का मूल रूप ग्रहण करना चाहिए।" " जब यह मालूम पड़े कि यह पाठान्तर है तभी परिशोधन साध्य है। नहीं तो कल्पना गलत होगी न ?" विट्टिदेव ने कहा । +4 'सच हैं क्या करें ? कवि के द्वारा समर्पित कृति को राजा के आस्थान में जो नकल की जाती है उस नकल को मूल से मिलाकर ही सार्वजनिकों के हाथ में पहुँचाने का नियम हो तो इस तरह के दोषों का निवारण किया जा सकेगा। ऐसी व्यवस्था के अभाव में ये गलतियाँ काव्य में बनी रह जाती हैं। अच्छा, इन प्रासों के उदाहरण दे सकते हो तुम लोग ?" बल्लाल ने कहा । 44 'आज जो पद्य पढ़ाया, 'सौन्दरिंग गणितमुं', उसमें वृषभ प्रास है ।" बल्लाल ने कहा । 44 'वैसे ही 'ईवयसमन्' में गज प्रास और 'मुत्तंतिलोकगुरु' में हय प्राप्त है।" बिट्टिदेव ने कहा । +4 'तेगेदुत्संगदोल' में सिंह प्रास है।" शान्तला ने कहा । * 'तो मतलब यह कि तुम लोगों को प्रास के लक्षण और उदाहरणों की अच्छी 264 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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