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________________ इससे भी प्रबल गवाही और क्या चाहिए।" हरिहरनायक ने कहा । 'यह भी कोई गवाही है। यह तो गालब्बे से सरासर 44 अभियुक्त हँस पड़ा, कहानी कहलायी गयी है।" " तो ये दाँत के चिह्न कब और कैसे बने ?" " चार-पाँच दिन पहले मैं हिरिंगे गाँव गया था। रास्ते में थकावट मिटाने को एक पेड़ के नीचे लेटा तो आँख लग गयी। तभी ऐसा लगा कि कुछ काट गया है । देखा, नाग - साँप जा रहा है। मैंने तुरन्त मुँह में उँगली डाली और दाँत गड़ाकर जहरीला खून चूसकर उगल दिया। मेरे ही दौतों के चिह्न हैं ये । " गालब्बे ने न आव देखा न ताब, जोर से बोल उठी, "झूठ।" अभियुक्त को इस कहानी को जो ध्यान से सुन रहे थे, वे सब एकदम चकित होकर गालब्बे की ओर देखने लगे । हरिहरनायक ने कहा, "गालब्बे, तुम कैसे कहती हो कि उसका कहना झूठ है?" अभियुक्त ने छाती ऐसे आगे की मानो वह जीत गया हो। साथ ही कहकहा मारता हुआ यह जोर से हँस पड़ा। गालब्बे ने कड़ा. " उसके दाँत तो देखो, कितने बड़े सूप-जैसे चौड़े हैं।" उसने मुँह बन्द कर लिया। उसकी तनी हुई छाती कुछ पीछे धसक गयी । हरिहरनायक ने कहा, "एक बार और हाथ आगे करो। " उसने हाथ तुरन्त आगे नहीं बढ़ाया, लेकिन बढ़ाये बिना रह भी नहीं सकता था । हरिहरनायक ने फिर गौर से देखा और कहा, "दौत के चिह्न छोटे और सम हैं, तथा रेखा कमान की तरह अर्ध चन्द्राकृति है।" उन्होंने गालब्बे को पास बुलाया। वह एकदम निडर होकर पास गयी। लोग बड़े कुतूहल से देखने लगे। बूतुग ने बीच में ही कहा, "परसों सवेरे तक इसके हाथ में कुछ नहीं हुआ था। कितना बड़ा झूठ बोलता हैं, यह?" " गालब्बे, तुम्हारा कहना सच है। ये चिह्न इसके दाँत के कतई नहीं। तुमने कैसे कहा कि ये चिह्न इसके दाँतों के नहीं ?" "वे मेरे ही दाँतों के हैं, इसलिए मैंने कहा, मालिक।" तब भी अपराधी ने कहा, "झूठ।" " 'अब क्या कहोगी, गालब्बे ?" 14 'तेल- वेल डलवाकर इसका हाथ धुलवा दीजिए, मालिक। परसों रात को अपने शील-संरक्षण के लिए इस घातक चाण्डाल के हाथ पर मुँह लगाना पड़ा था । आज अपनी सचाई साबित करने के लिए फिर वही करूँगी।" गालब्बे ने कहा । "गालब्बे, तुम एक बार और सोच लो तब कुछ कहो।" हरिहरनायक ने कहा । "मेरे मालिक ने मुझे सिखाया है कि सत्य बोलने से डरूँ नहीं।" अपराधी का हाथ धोया गया । गालब्बे ने अपना आँचल कसकर कमर के फैट पट्टमहादेवी शान्तला : 235
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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