SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभियुक्त कहकहे न रोक सका और उसे धर्मदर्शी की 'डाँट खानी पड़ी। जूतुग ने सोचा इसने हमसे जो कहा सो सच निकला। किस बोंबी में कैसा साँप होता है, कौन जाने। शोर कम होने में थोड़ा समय लगा, धर्मदर्शी को दो बार खामोशखामोश कना पड़ा। शान्तला वहीं से उठकर बरामदे के खम्भे के सहारे बैठी मंच की ओर अपलक निहार रही थी। "हेग्गड़ेजी, क्या आप अभियुक्त का बयान स्वीकार करते हैं ?" "श्रीदेवी मेरी सहोदर बहिन नहीं। इतनी बात स्वीकार करता हूँ।" "तो आपका श्रीदेवी से क्या सम्बन्ध है?" "मैं इस प्रश्न का उत्तर और अपना वक्तव्य बाद में देना चाहूँगा। न्यायपीठ तब तक शेष गवाहियाँ ले ले तो मुझे भी सुविधा होगी।" उनके खड़े होने का ढंग, वह निर्भीक वचन, और सरलता से मन पर परिणाम पैदा कर सकने वाली उनकी वाणी, यह सब देखकर अभियुक्त के मन में खटका पैदा हो गया। उसने बीच में जो तीर छोड़ा उससे उसने समझा कि वह सरक्षित है। यह उसकी भावना थी। इसलिए उसने कहकहा लगाया था। जैसा और हेग्गड़े लोगों को उसने देखा-समझा था वैसा ही इनको भी समझा। कई प्रतिष्ठित लोगों के विषय में सा ह की अफलाहें फैलाने है में अपनी गौरव-हानि के डर से अफवाह फैलानेवालों के कहे अनुसार चलने भी लगते हैं। इस बात से भी वह परिचित था। यहां भी वैसे ही काम बन जाने की आशा यी उसे । इसी धैर्य के बल पर उसने गालब्बे के वक्तव्य को स्वीकार करने से इनकार किया था, यद्यपि उसकी सचाई की प्रत्यक्ष गवाही उसका दार्यों हाथ दे रहा था। "आपको जवाब उसे देना है जिसपर आपने आरोप लगाया है। इसलिए उसका अभिप्राय जान लें। अभियुक्त, बताओ पहले हेग्गड़ेजी का बयान लें या गवाहों का?" अभियुक्त का मन कुछ आतंकित था। वह वास्तव में हेगड़े का बयान तुरन्त सुनना चाहता था। परन्तु अपने अगले कदम पर विचार के लिए कुछ समय भी चाहता था। "हेग्गड़ेजी, अपने गवाहों को बुलाइए।" सबने प्रमाण वचन स्वीकार करके अपना-अपना वक्तव्य दिया। ये सारे वक्तव्य, गालब्धे ने जो वक्तव्य दिया था उसके पूरक थे। इसके बाद हरिहरनायक ने कहा, "हेग्गड़ेजी, अभियुक्त पहली गवाही सुनने के बाद से ही कह रहा था कि ये सारी गवाहियाँ रटी-रटायी है और चूँकि सब गवाह प्राय: एक ही बात कह रहे हैं. इसलिए और अधिक विश्वसनीय तथा प्रामाणिक साक्ष्य की आवश्यकता होगी।" "अभियुक्त के हाथ की परीक्षा की जा सकती है।" हेग्गड़े ने कहा। अभियुक्त ने अपना हाथ ऐसे आगे बढ़ाया मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। देखकर सभी पंचों ने बताया, "दाँत के चिह्न स्पष्ट हैं।" "गालब्बे ने बताया ही था, उसने दाँत गड़ा दिये थे जिसके चिह्न भी मौजूद हैं। 234 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy