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________________ में खोंस लिया और हजारों आँखों के सामने उसका हाथ पकड़कर अपने खुले मुँह की ओर उठाया। "तो उस रात को जो आयी थीं वह तुम ही हो।" अभियुक्त ने पूछा। "हाँ" "वह सारी सजावट?" "किसी को सजावट नहीं करनी चाहिए क्या?" "मैंने समझा कि वह कोई और थी ?" "तो मान लो।' दूसरा चारा नहीं था। उसने मान लिया। बूतुग ने मन-ही-मन कहा, यह कैसा अधर्मी चाण्डाल है। ग्वालिन मल्लि आगे बढ़ी, "मालिक उस दिन नकली चेहरा लगाकर आनेवाला धूर्त यही है।" अभियुक्त को स्वीकार करना पड़ा। लोगों ने थू-थू की। बूतुग जोर से चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगा, "चाण्डाल, महाचाण्डाल ।" उसका बच्चों का-सा नादान मन जल उठा। उसने इसे कितना अच्छा आदमी माना था, सब उलट गया। "ठीक, वह धोबिन चेन्नी आकर गवाही देगी तो वह भी यही कहेगी, कहेगी न?" अभियुक्त ने सिर हिलाकर सहमति प्रकट की। "इससे, तुम्हारा चाल-चलन कैसा है, यह बात सारे बलिपुर के लोगों के सामने स्पष्ट हो गयी। अब यह बताओ कि तुमने शादी का नाटक क्यों रचा ?" "हेग्गड़े ने जो शिकायत की है उससे इस प्रश्न का कोई सम्बन्ध नहीं।" "अच्छा, हेग्गड़ेजी ने जो शिकायतें दी हैं उनमें कुछ तो सत्य सिद्ध हो ही चुकी हैं। और दूसरी शिकायतें भी सत्य हैं, ऐसा तो चुपचाप स्वीकार कर लो।" "झूठ।" अभियुक्त ने जवाब दिया। "सो क्या तू परमारों का गुप्तचर नहीं?" "मैं कन्नड़ हूँ, कनाटक का?" "तुम कर्नाटक के हो, या कन्नड़ का अभ्यास करके कहीं बाहर से आये हो?" "बात जात को बता देती है, इसमें सन्देह क्यों किया जा रहा है?" "सवाल का जवाब सवाल नहीं ?" "मैं गुप्तचर है, इसका क्या प्रमाण है? यही न कि तुम लोगों ने मुझे गुप्तचर समझ लिया है?" "रायण, उस ग्वाले त्यारप्पा को बुला ला।" हेग्गड़े ने आदेश दिया। अभियुक्त ने घबड़ाकर इधर-उधर देखा। सिपाही उसके हाथों को पीठ-पीछे बाँध रहे थे। दो सिपाही ग्वाले त्यारप्पा को बाँध लाये। मल्लि ने अपने पति की यह हालत देखी तो 236 :: पट्टमहादेवी शान्तस्दा
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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