SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल दोपहर को ही हो। अम्माजी भी यही कहती है। अब जाकर आराम करो। मैं भी आराम करूँगा।" सुबह स्नान-उपाहार आदि समाप्त कर रेविमथ्या और गोंक दोनों हेग्गड़े के घुड़साल में गये। उनके घोड़े मालिश-शुदा होकर चमक रहे थे। घोड़े भी खा-पीकर तैयार थे। घोड़ों का प्रातःकालीन आतिथ्य चल रहा था। पास ही जीन-लगाम से लैस एक रट्ट तैयार खड़ा था। दोनों उसकी ओर आकर्षित हुए । घुड़साल के उस कर्मचारी को पिछले दिन इन लोगों ने नहीं देखा था। उसके पास जाकर रेविमय्या ने पूछा, "यह टट्ट किसके लिए है?" "यह छोटी अम्माजी के लिए है।" उत्तर मिला। "क्या! अम्माजी घोड़े की सवारी भी करती हैं?" रेविमय्या ने चकित होकर पूछा। नौकर ने गर्व से कहा, "आप भी उन जैसी सवारी नहीं कर सकते।" इसी बीच शान्तला यहाँ आयो। वह वीरोचित वेषभूषा, काछ लगी धोती, अंगरखे में सजी हुई थी। "रायण ! अब चलें !" कहती हुई वह अपने टट्ट के पास गयी और उसे थपथपाया। अपने टट्ट को लेकर घुड़साल से बाहर निकल पड़ी। रागण दुसरे घोड़े को लेकर उसका अनुसरण करने लगा। रेत्रिमय्या शान्तला के पास आया। पूछा, "अम्माजी, आपके साथ चलने की मुझे इच्छा हो रही है। क्या मैं भी चल?" "आइए, क्या हर्ज है।' फिर उसने घुड़साल की ओर देखकर कहा, "अभी तो आपका घोड़ा तैयार नहीं है।" रेविमय्या ने कहा, "अभी दो ही क्षणों में तैयार हो जाऊँगा।" इतने में हेग्गड़े वहाँ आये। उन्होंने पूछा, "कहाँ के लिए तैयारी है?" रेविमय्या ने जवाब दिया, "अम्माजी के साथ जाने के लिए अपने घोड़े को तैयार कर रहा हैं।" हेग्गड़े ने कहा, "रायण! तुम ठहर जाओ।" फिर रेविमय्या से कहा, "तुम इसी घोड़े को लेकर अम्माजी के साथ जा सकते हो।" फिर क्या था? नयी मैत्री के लिए सहारा मिल गया। शान्तला और रेविमय्या दोनों निकले, अपने-अपने घोड़ों पर । रेविमय्या चकित रह गया। वहाँ राजमहल में घोड़े के पास जाते हुए डरनेवाले राजकुमार उदयादित्य। यहाँ एक साधारण हेग्गड़े की साहस की पुतली छोटी बालिका। यदि कोई और यह 28 :: पट्टपहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy