________________
नहीं बिता सकते। काम समाप्त हुआ कि दूसरे काप के लिए दौड़ना पड़ता है। तुम्हें यह सब मालूम नहीं होता, बेटी।"
"सब लोगों की भी तो यही दशा है। एक काम समाप्त हुआ कि नहीं, दूसरे काम पर आगे बढ़ते जाना चाहिए।"
रेविमय्या टकटकी लगाये शान्तला को ही देखता रहा।
हेगड़े मारसिंगय्याजी को हँसी आ गयी। वे बोले, "बेटी ! तुम बड़े अनुभवी लोगों की तरह बात करती हो।"
निमय्या ने कहा "हेली मा एक योग्य मारो अच्छी शिक्षा दिलाने की व्यवस्था करें तो बहुत अच्छा होगा। इसके लिए यहाँ की अपेक्षा राजधानी बहुत ही अच्छी जगह होगी। वहाँ बड़े योग्य और निपुण विद्वान हैं।"
"यह बात तो महाराजा की इच्छा पर अवलम्बित हैं। यहाँ भी अच्छे शिक्षक की व्यवस्था की गयी है। अभी संगीत, साहित्य और नृत्य की शिक्षा क्रम से दी जा रही है। इसके गुरु भी कहते हैं कि अम्माजी बहुत प्रतिभासम्पन्न है।'
"गुरुजी को ही कहता होगा? अम्माजी की प्रतिभा का परिचायक आईना उनका मुखमण्डल स्वयं है। यदि अनुमति हो तो एक बार बच्ची को अपनी गोद में उठाऊँ ?"
"यह उसे सम्मत हो तो कोई आपत्ति नहीं। गोद में उठाने को वह अपना अपमान समझती है।"
"नहीं अम्माजी, गोद में उठाना प्रेम का प्रतीक है। जिसे गोद में लिया जाता है उसकी मानसिक दुर्बलता नहीं। इसमें अपमान का कोई कारण नहीं। आओ अम्माजी, एक बार सिर्फ एक ही बार अपनी गोद में लेकर उतार दूंगा।" गिड़गिड़ाते हुए रेविमय्या ने हाथ आगे बढ़ाये
शान्तला बिना हिले-डुले पूर्तिवत् खड़ी रही। आगे नहीं बढ़ी। वही दो कदम आगे बढ़ आया। उसकी आँखें तर हो रही थीं। दृष्टि मन्द पड़ गयी। वैसे ही बैठ गया। शान्तला अपने पिता के पास जाकर बैठ गयी। यह सब उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया।
हेगड़े मारसिंगय्या ने पूछा, "क्यों? क्या हुआ?1 रेविमय्या की आँखों से धारासार औंसू बह रहे थे। धारा रुको ही नहीं। मारसिंगय्या ने गोंक की ओर देखा। गोंक ने कहा, "वह बहुत भावुक है। उसके विवाह के छः वर्ष के बाद उसकी एक बच्ची पैदा हुई थी। दो साल तक जीवित रही। बच्ची बहुत होशियार थी। उसके मरने के बाद फिर बच्चे हुए ही नहीं। उसे बच्चे प्राणों से भी अधिक प्यारे हैं।"
"बेचारा!" अनुकम्पा के स्वर में हेगड़े भारसिंगय्या ने कहा। रेविमय्या को स्वस्थ होने में कुछ समय लगा। हेग्गड़े मारसिंगय्या ने कहा, "आप लोग एक काम करें। आप लोगों की यात्रा
पट्टमहादेवी शान्तला :: 27