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________________ नहीं किससे कहा था कि शायद वह पास के गाँव हरिगे या गिरिंगे गया होगा। वह इसी तरह दो-तीन दिन में एक बार कहीं-न-कहीं जाया-आया करता है। ऐसे ही शायद गया होगा, समझकर चुप रह गया। अभी यों ही खा-पीकर बैठा था। किसी ने कहा कि मालिक के घर में बड़ी विचार सभा होगी। इसी ओर आ रहा था। इतने में लेंक आया और बोला मालिक बुला रहे हैं। मुझे लगा कि मैं बड़ा आदमी हो गया, चला आया।" ___ "इसके बारे में तुम्हें कोई और बात मालूम है?"सरपंच हरिहर नायक ने पूछा। "सब कह दिया। अगर कोई और बात याद आएगी तो फिर कहूंगा।" तुग बोला। "उसे आज कौन-सी लड़की देखनी थी?" "वहीं, जो मुझे बुलाने आया था न, वह लेंक। उसकी औरत की बहन को देखनेवाला था।" "तुमने कहा, वह कभी-कभी बाहर जाता था। कहाँ और क्यों जाता था, तुमको मालूम है?" "मैं उससे क्यों पूछता? सच बात तो यह कि मैं उसके साथ रहता ही न था। वही मिलने को मेरे पास कभी आ जाता। हम तो खेतिहर हैं, सुबह से शाम तक मिट्टी में रहनेवाले। यह चमकदार पत्थरों के बीच रहनेवाला। कुछ पूर्वजन्म के ऋण-बन्ध से स्नेह हुआ है। इतना ही।" “शिष्टाचार के नाते तुमने पूछा नहीं, यह भलमानसी का लक्षण है। पर उसने खुद तुमसे कुछ नहीं कहा?" "नहीं, वह क्या-क्या कहता था, मुझे याद नहीं पड़ता। याद रखने लायक कोई बात तो नहीं । हाँ, वह बड़ी मजेदार कहानियाँ सुनाता है। उसे राजा-रानियों की बहुतसी कहानियाँ मालूम हैं । वह बड़ा होशियार है। राजा-रानियों के रहस्य की कहानियाँ जब बताता है तब ऐसा लगता है मानो खुद राजा है। मगर उनका नाम न बताता।" "तुमने कहा वह बहुत-से किस्से सुनाया करता था। उसमें एक-दो किस्से याद हों तो सुनाओ।" "यहाँ, सबके सामने, उसमें भी जब यहाँ इतनी स्त्रियां मौजूद हैं। न, वे सब एकान्त में कहने लायक किस्से हैं।" "जाने दो, इतना तो सच है कि वह ऐसे रहस्यमय किस्से सुनाया करता था, जिन्हें दूसरों के सामने कहते हुए संकोच होता है। ठीक है न?" "हाँ, यह ठीक बात है।" "तो तुम्हें और कुछ मालूम नहीं?" "नहीं 111 पट्टमहादेवी शान्तना :: 221
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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