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'यहाँ वह कभी बीमार तो नहीं पड़ा। हमारे गाँव के किसी वैद्य ने उसकी परीक्षा - चिकित्सा तो नहीं की ?"
44 'ऐसा कुछ नहीं। पाँच
व-छः महीने से है यहाँ । पत्थर-सा मजबूत है, हृष्ट
पुष्ट ।
"ठीक है, कहीं मत जाना। जरूरत होगी तो फिर बुलाएँगे ?" बूतुग लेंक के पास थोड़ी दूर पर बैठ गया।
तो
हरिहरनायक ने अभियुक्त से पूछा, "तुम्हारे गवाह ने जो कुछ कहा वह सब सुना है न ? और भी कुछ शेष हो तो कहो। अगर कुछ बातें कहने की हों और छूट गयी हों या वह नहीं कह सका हो तो तुम उससे कहला सकते हो, चाहोगे तो उसे फिर से बुलाएँगे । "
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'बूतुग ने उसे जो कुछ मालूम था सब कह दिया। उसके बयान से ही स्पष्ट है कि मैं कैसा आदमी हूँ। सचमुच इस गाँव में उससे अधिक मेरा कोई परिचित नहीं है ।"
"टीक, तुम्हारी तरफ से गवाही देनेवाला कोई और है ?"
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और कोई नहीं। अन्त में मैं खुद अपना बयान दूँगा । "
"ठीक।" हरिहरनायक ने हेगड़े से कहा, "अब आपने जो शिकायतें दी हैं उन्हें साबित करने के लिए एक-एक करके अपने गवाहों को बुलाइए।"
मल्लि ग्वालिन बुलायी गयी। चढ़ती जवानी सुन्दर सलोना चेहरा, साधारण साड़ी कुर्ती, बिखरे बाल, गुरबत की शिकार। मंच के पास आती हुई इर्द-गिर्द के लोगों को देख शर्मायी । शरम को ढँकने के लिए आँचल दाँतों से दबाये वह निर्दिष्ट जगह जाकर खड़ी हुई। पंचों को देख, जरा सर झुकाया। धर्मदर्शी ने आकर शपथ दिलायी। हरिहरनायक ने कहा, "कुछ संकोच मत करो, जो कुछ तुम जानती हो, वह ज्यों- -का-त्यों कहो निडर होकर कहो, समझी ?"
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"समझी, मालिकः" मल्लि उँगली काटती हुई कुछ याद आने से मुस्कुरा गयी । मुस्कुराने से उसके गालों में गढ़े पड़ गये इससे उसकी सुन्दरता और बढ़ गयी। बहुतों की आँखें उसकी गवाही को कम, उसे अधिक देख रही थीं।
हरिहरनायक ने पूछा, "मल्लि, तुम इसको जानती हो ? यह दूसरी जगह का हैं और तुम बलिपुर की, है न?"
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'हाँ, मालिक । "
"तो तुम्हें इसका परिचय कैसे हुआ ?"
" मेरे पति और ये दोस्त हैं । "
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'दोस्ती हुई कैसे ?"
"यह मैं नहीं जानती, मालिक। मेरे पति ने मिलाया था। तीन-चार बार यह मेरे
222 पट्टमहादेत्री शान्तला