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________________ खोज मैं कर रहा था वह मिल ही गया, कहता हुआ यह मेरी बगल में उसी जगत पर आ बैठा। गूलर खाते देखकर इसने मुझसे पूछा, क्या बलिपुर में यही अंजीर है। मैंने कहा कि यह गरीबों का अंजीर है। इसने कहा मेरी मदद करो। मैं तुम्हारी गरीबी को मिटा दूंगा। तुमको उस जगह ले जाऊँगा जहाँ सचमुच अंजीर मिलेगा। और इसने सोने का एक वराह-मुद्रांकित सिक्का मेरे हाथ में थमा दिया। उसे मैंने अण्टी में खोंस लिया। मुझे लगा कि यह कोई धर्मात्मा है। यह मुझे अच्छा लगा। मैंने पूछा, यहाँ क्यों और कहाँ से आये । इसने कहा कि मैं कल्याण से आया हूँ। वहाँ मेरा बड़ा कारोबार है। मैं जवाहरात का व्यापारी हूँ। चालुक्य चक्रवती को और रानियों को मैं ही हीरेजवाहरात के गहने बेचा करता हूँ। वैसे ही, अपने व्यापार को बढ़ाने के ख्याल से इस प्रसिद्ध पोयसल राजधानी के राजमहल में जेवर बेचने के इरादे से आया हूँ। हालांकि, अभी करहाट से आ रहा हूँ। राजमहल में दिखाने लायक जेवर खतम हो जाने से लोगों को कल्याण भेजा है। इसने यह भी कहा सुनते हैं कि यहाँ के हेग्गड़े और पोय्सल राजवंशियों में गहरा स्नेह है इसलिए इनको अपना बनाकर इनसे परिचय-पत्र प्राप्त कर वहाँ जाना चाहता हूँ। इसीलिए जो लोग और जेवर लेने कल्याण गये हैं उनके आने तक, यहाँ ठहरने के लिए जगह की जरूरत है। एक जगह मेरे लिए बना दो। मैंने स्वीकार किया। आखिरी घरवाला रंगगौड़ा युद्ध में गग, इसकी पनी प्रपत्र में मायके गयी है, इसलिए शायद वहाँ जगह मिल सकेगी, यह सोचकर इसको बहाँ ले गया। बुढ़िया यान गयी। इससे हम दोनों में 'आप' का प्रयोग छूटा, तू, तुम का ही प्रयोग होने लगा, स्नेह के बढ़ते-बढ़ते । बेचारा अच्छा आदमी है, बहुत उदार भी। हमारे गाँव में ऐसा कोई आदमी नहीं। ऐसे ही दिन गुजरते गये, लेकिन आदमी कल्याण से नहीं आये। बेचारा घबड़ा गया। वहाँ जो युद्ध हो रहा है उसके कारण वे कहीं अटक गये होंगे। इसलिए मैंने उसे खुद ही एक बार कल्याण हो आने को कहा। उसने कहा अगर अचानक रास्ते में मुझे भी कुछ हो जाए तो क्या हो, और मैं इधर से जाऊँ और के उधर से आ जाएँ तो भी मुश्किल। यहाँ एक अच्छा घर है, तुम-जैसे दोस्त भी हैं। लोगों के आने तक मैं यहीं रहूँगा। ऐसी हालत में मैंने सलाह दी कि तुम अकेले हो, घर भी है, कहते हो अभी शादी नहीं हुई है। हमारे गाँव की ही किसी लड़की से शादी कर ली। बेचारा अच्छा है। कहते ही मेरी सलाह मान ली।" पंचों में से एक ने कहा, "शादी हो गयी?" "ऐसे धनी पुरुष के लिए ठीक जोड़ी का मिलना यहाँ मुश्किल हुआ। इस बेचारे को जहाँ भी लड़की दिखाने ले गया वहीं गया लेकिन वहाँ खाना खाता, गाना सुनता और वहाँ से उठता हुआ कहता, बाद को बताऊँगा। वास्तव में आज इसी वक्त एक और लड़की देखने जाना था। उसका भी मैंने ही निश्चय किया था। पता नहीं क्या हो गया। कोई चाल चलकर इसे परसों पकड़ा है चाण्डालों ने। मुझे शंका है। मैंने, पता 720 :: पट्टमहादेवो शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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