SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ FI 'कहा जाता है, वह कल्याण का हीरे-जवाहरात का व्यापारी है।" "वह यहाँ क्यों आया, दोरसमुद्र गया होता तो उसका सौदा वहाँ बहुत अच्छा पटा होता।" +1 'सुनते हैं वह इसी उद्देश्य से निकला था। वहाँ दिखाने लायक जेवर- - जवाहरात अभी उसके पास पहुँचे नहीं। उन्हीं की प्रतीक्षा कर रहा है।" " वह कहाँ ठहरा है ?" " उस आखिरी घरवाले रंगगौडा के यहाँ ।" "छोड़ो, अच्छा हुआ। उस पूरे घर में वह आधी अन्धी बुढ़िया अकेली रहती । उसका बेटा युद्ध में गया है। सुनते हैं, बहू प्रसव के लिए मायके गयी हैं और कह गयी है कि पति के लौटने के बाद आऊँगी। अगर वह यहाँ होती तो यह कोई चमकदार पत्थर दिखाकर उसे अपने जाल में फँसा लेता।" FL "सच कहा जाए तो ऐसे व्यक्तियों को शादी करनी ही नहीं चाहिए।" 'अगर कोई लड़की किसी दिन न मिली तो वह क्या करे इसलिए उसने सोचा कि किसी लड़की से शादी कर ले तो वह घर में पड़ी रहेगी। "लड़की खोजने के लिए क्या और कोई जगह उसे नहीं मिली ?" "बड़ा गाँव है, शादी के योग्य अनेक लड़कियाँ होंगी, एक नहीं तो दूसरी मिल ही जाएगी, यही सोचकर यहाँ रह रहा है।" यो बेकार लोगों में मनमाने ढंग की बातें चल ही रही थीं कि झुण्ड के झुण्ड घोड़े सरपट दौड़ते आ रहे दिखे जिससे गम्पियों की यह जमात घबड़ाकर धोती- फैंटा ठीक करती हुई उस तरफ देखने लगी, उनमें से किसी ने कहा, "सेना आ रही होगी । " सब लोग इर्द-गिर्द की छोटी गलियों से होकर जान बचाकर भागने लगे। कुछ लोग राजपथ की ओर झाँक-झाँककर देखने लगे। कुछ अपने घर पहुँच गये। उसी समय एक वृद्ध पुरुष मन्दिर से आ रहा था, भागनेवालों को देखा तो पूछा, "अरे घबड़ाकर क्यों जा रहे हो ?" एक ने कहा, "सेना है।" "सेना! ऐसा है तो भागकर हेग्गड़ेजी को खबर दो ।" बूढ़े ने कहा । "यह ठीक है" कहता हुआ एक आदमी उधर दौड़ गया। बेचारा वृद्ध न आगे जा सका, न पीछे हट सका। वहीं एक पत्थर पर बैठ गया । गाँव के राजपथ के छोर पर पहुँचते ही घोड़े रास्ते के दोनों ओर कतार बाँधकर धीमी चाल से आगे बढ़े। बीच रास्ते में चल रहे सफेद घोड़े पर सवार व्यक्ति का गम्भीर भाव दर्शनीय था। उन सवारों के आने के ढंग से लगता था कि डर की कोई बात नहीं, बल्कि वह दृश्य बड़ा ही मनोहर लग रहा था। वे उस रास्ते से इस तरह जा रहे थे मानो बलिपुर से खूब परिचित हों। वे सीधे हेग्गड़े के घर के प्राचीर के मुख्य पट्टमहादेवी शान्तला : 215
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy