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________________ द्वार के पास दोनों ओर कतार बाँधे खड़े हो गये। बीच के उस सवार ने दरवाजे के पास घोड़ा रोका। हेग्गड़े, रायण और दो-चार लोग हड़बड़ाकर बाहर भाग आये। सफेद घोडे के सवार पर द्रष्टि पड़ते ही हेग्गड़े ने उसे प्रणाम किया। सवार ने होठों पर उँगली रखकर कुछ न बोलने का संकेत किया और घोड़े से उतरा। अपने आस-पास खड़े लोगों के कान में हेग्गड़े मारसिंगय्या कुछ फुसफुसाया। उनमें से कुछ लोग अहाते से बाहर निकले और दो व्यक्ति अन्दर की ओर बढ़े। हेग्गड़े मारसिंगय्या फाटक पर आये। अतिथि-सत्कार की विधि के अनुसार फिर झुककर प्रणाम किया और दोनों हाथ अन्दर की ओर करके कहा, "पधारिए।" इतने ही में लोग अपने-अपने घरों की अगत पर कुतुहल-भरी दृष्टि से उन नवागन्तुकों को देखने के लिए जमा हो गये। कोई कहने लगा, बहन का पति होगा, पत्नी को ले जाने आया है । दूसरा बोला, अच्छा है, अच्छी जगह बहन का ब्याह किया है। और तीसरा कहने लगा, भारी भरकम आदमी है, पुरुष हो तो ऐसा। किसी ने चिन्ता व्यक्त की, इसकी उम्र कुछ ज्यादा हो गयी है। दूसरे ने अनुमान लगाया, पदसूसही शादी होग को दूर की कमी लाय:, हेग्गड़े की बहन की एक सौत भी है। कोई उससे दो-चार हुआ, सौत होने पर भी यह छिनाल इन्हें नचाती है, यह क्या कोई साधारण औरत है? इतने में अन्दर से मंगलवाद्य आया, मार्गदर्शक दीपधारी आये, चाँदी का कलश हाथ में लिये शान्तला आयी। गालब्बे चौकी ले आयी, मारसिंगय्या ने अतिथि से उस पर खड़े होने का आग्रह किया। माचिकच्चे ने अतिथि के माथे पर रोरी का टीका लगाकर उन्हें फल-पान किया और गालब्बे को साथ लेकर उसकी आरती उतारी। सब अतिथि अन्दर गये। घोड़े घुड़साल भेजे गये । सारा आँगन खाली हो गया। खाली आँगन देखने के लिए कौन खड़ा रहेगा? सब प्रेक्षक अपने-अपने घर गये, अपने घरों में जो बना था उसे खाया और आराम से सो गये। जूठे पत्तल चाटकर छाँह में कुत्ते जीभ फैलाकर, पाँव पसारे, कान उठाये, पूँछ दबाये आराम करने का ढोंग करते इधरउधर नजर फेंकते पड़े रहे। दूसरे दिन भयंकर गरपी की खामोश दुपहरी में ढोल की आवाज दो-चार स्थानों से एक ही साथ सुनाई पड़ी। पान की पीक थूकने के लिए जो लोग बाहर आये थे, वहीं खड़े सुनने लगे। कुछ लोग आधी नींद में ही उठकर बाहर आ गये । बरतन-बासन धोती घर की स्त्रियाँ वैसे कालिख लगे हाथों, गिरी-टूटी दीवारों के सहारे खड़ी बाहर देखने लगीं। बच्चे कोई तमाशा समझकर ताली बजाते हुए दौड़ पड़े। 216 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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