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"मुझे मालूम ही नहीं था।" शान्तरला की रिप्पणी थी।
"छोड़ो भी, मेरा गाना भी क्या? मेरी माँ गाया करती थी, वह तुम लोगों को सुनना चाहिए था। मेरे पिता बड़े क्रोधी स्वभाव के थे। यथा नाम तथा काम । मगर मेरी माताजी गाती तो पिताजी ऐसे सिर हिलाते हुए बैठ जाते जैसी पूँगी का नाद सुनकर नाग शान्त होकर फन हिलाता हुआ बैठ जाता है। उन्होंने मुझे भी सिखाया था, हालांकि मुझे सीखने की उतनी उत्सुकता नहीं थी। इतने में मुझे दसवाँ वर्ष लगा तो मेरा विवाह हो गया ! दा साह मे परम्परागत गीत ही सीख सकी जो विवाह के समय नवदम्पती के आगे गाये जाते हैं। आज कुछ गाने का मन हुआ तो गा दिया। तुम्हें विदा करने में मेरा मन हिचकता है।" माचिकब्बे ने कहा।
"अच्छा, अब जाऊँगी तो क्या फिर कभी नहीं आऊँगी क्या?" श्रीदेवी ने कहा।
"अब तक तुम यहाँ रहीं, यही हमारा सौभाग्य था। बार-बार ऐसा सौभाग्य मिलता है क्या?" गालब्बे आरती का थाल ले आयी। दोनों ने मिलकर श्रीदेवी की आरती उतारी। याचिकब्बे ने फिर एक पारम्परिक गीत गाया। कुनकुने सुगन्धित जल्ल से पंगल-स्नान कराया और यज्ञेश्वर की रक्षा भी लगायी।
लोगों में यह सब चर्चा का विषय बन गया। सुनते हैं हेग्गड़े अपनी बहन को पति के घर भेज रहे हैं। ससुराल के लोग उन्हें लेने के लिए आये हैं। आज हेग्गड़ती मांगलिक ढंग से क्षेमतण्डुल देकर विंदा करेगी। इष्टमित्र और आप्तजनों के लिए भोज देने की व्यवस्था भी है।
इन बातों के साथ कुछ लोग अपटसपट बातें भी कर रहे थे। कोई कहता, यह हेग्गड़े कोई साधारण आदमी नहीं, रहस्य के खुलने पर भी उसी को गर्व की बात
तकर उस कुलटा को सजा-धजाकर मन्दिर ले गया और सबके सामने उसे प्रदर्शित हया और गाँव के लोगों के सामने उसे मन्दिर में हेगड़ती से नमस्कार भी करवा दिया। दूसरा बोला, हे भगवान! कैसा बुरा समय आ गया, यह सब देखने के बाद कौन किसी पर विश्वास करेगा, कैसे करेगा? गाँव का मालिक ही जब इस तरह का व्यवहार करे तो दूसरों को पूछनेवाला ही कौन है, तीसरे ने कहा। चुनाव करने में तो वह सिद्धहस्त है, ऐसी सुन्दर चीज कहाँ से उड़ा लाया, कुछ पता नहीं, एक और बोला। देखो कितने दिन वह उसे अपना बनाकर रखता है, बीच में कोई बोल उठा।
इस गोष्ठी में कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्हें जानकार लोग कहा जा सकता है।
''यह रहस्य खोलनेवाले का पता ही नहीं। वह गया कहाँ। कल उसने लैंक की साली को देखने का सब इन्तजाम किया था।"
"शायद उसकी आँख और किसी गाँव की लड़की पर लगी होगी। लेकिन कल वह आएगा जरूर।"
"सो तो ठीक है, असल में वह है कौन?"
214 :: पट्टमहादेवी शासला