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________________ "यह क्या भाभी, यह क्या कह रही हैं, सुनकर छाती फट रही है। क्या मैंने कोई ऐसा-वैसा व्यवहार किया है?" श्रीदेवी की आँखों में आँसू भर आये। माचिकब्जे ने श्रीदेवी के हाथ अपने हाथों में लेकर कहा, "ऐसा कुछ नहीं है, हमें अच्छी तरह मालूम है कि तुमसे ऐसा कभी नहीं हुआ, न ही हो सकेगा। फिर भी, दुनिया बुरी है, वह सह नहीं सकती। दुनिया हमें अपने में सन्तुष्ट रहने नहीं देती। हमेशा बखेड़ा खड़ा करने को कमर कसे रहती है। यह बात मैं अम्माजो के सामने नहीं कह सकती थी। इसीलिए मुझे ठीक समय की प्रतीक्षा करनी पड़ी।" । श्रीदेवी को इस बात का भरोसा हुआ कि उसने कोई ऐसा काम नहीं किया जिससे हेग्गड़ेजी को कष्ट हुआ हो। आसमान में स्वतन्त्र विचरण करनेवाले पंछी के पंखों की तरह उसकी पलकें फड़फड़ाने लगी। आँखों की कोर में जमे अश्रबिन्दु मोती की भाँति बिखरने लगे। माचिकब्बे में कुछ परेशान होकर पूछा, "ये आँसू क्यों, श्रीदेवी?" "कुछ नहीं, भाभी। पहले यह अहसास जरूर हुआ था कि मुझसे शायद कोई अपराध हो गया है लेकिन अब वह साफ हो गया। अब, भाभी आपसे एक बात अलबत्ता कहना चाहती हूँ, इसी वक्त, क्योंकि इससे अच्छा मौका फिर न मिल सकेगा। मैं अपने जन्मदाता माँ-बाप को भूल सकती हूँ परन्तु आपको और भैया को आजन्म नहीं भूल सकती। आप लोगों ने मुझ पर उपकार ही ऐसा किया है कि उसे जन्मभर नहीं भूल सकती। वास्तव में न मेरे भाई हैं न भाभी। आप ही मेरे भाभी-भैया हैं। यह बात मैं बहुत खुशी से और गर्व के साथ कहती हूँ। आप जैसे भाई-भाभी पाना परम सौभाग्य की बात है, यह मेरा पूर्वजन्म के सुकृत से प्राप्त सौभाग्य हैं। कारण चाहे कुछ भी हो, उचित समय के आने तक यहाँ से अन्यत्र कहीं न भेजें। जब आपके आश्रय में आयो तब मान को धक्का पहुंचने का डर होता तो हो सकता था, लेकिन वह मान बना ही रहा है।" "श्रीदेवी, तुम्हारी सद्भावना के लिए हम ऋणी हैं। उनको और मुझं भाई-भाभी समझकर सद्भाव से तुम हमारे साथ रहीं, यह हमारा सौभाग्य है, तुम्हारा पुण्य नहीं हमारा पुण्य-फल है। वास्तव में इनकी कोई बहिन नहीं है। इन्होंने इसे कई बार मुझसे कहा है, ईश्वर किस-किस तरह से नाते-रिश्ते जोड़ता है यह एक समझ में न आनेवाला रहस्य है । मुझ-जैसे को ऐसी बहिन मिलना मेरे सुकृत का ही फल है। तुमने भी नागपंचमी और उनके जन्म-दिन के अवसर पर उनकी पीठ दूध से अभिषिक्त करके उनको बहिन होने की घोषणा की। ऐसी स्थिति में उनके मन में कोई बुरा भाव या उद्देश्य नहीं हो सकता, श्रीदेवी। हाँ, इतना अवश्य है कि वे दूर की बात सोचते हैं। इसलिए उनके कहे अनुसार चलने में सबका हित है। उनके अनुसार अब वर्तमान स्थिति में तुम्हारा यहाँ रहना खतरनाक है।" पट्टमहादेवी शान्तला :: 105
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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