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________________ बीच ही में शान्तला बोली, "उन बातों को जाने दो मौं । उल्लू के बोलने से दिन रात नहीं हो जाता। वे मानते हैं कि वे बड़े हैं तो मान लें। उससे हमास क्या बनताबिगड़ता है।" माचिकब्बे ने बात बन्द कर दी, उसके मन की गहराई में जो भावना थी उसे समझने में रुकावट आयी तो श्रीदेवी ने शान्तला की ओर बुजुर्गाना निगाहों से देखा, "बेटी, तुम तो छोटी बच्ची हो, तुम्हारे कोमल हृदय में भी ऐसा जहर बैठ गया है, तो, उस चामचा का व्यवहार कैसा होगा? किसी के विषय में कभी कोई बुरी बात अब तक मैंने तुम्हारे मुंह से नहीं सुनी । आज ऐसी बात तुम्हारे मुँह से निकली है तो कुछ तीव्र वेदना ही हुई होगी। फिर भी, बेटी, उस जहर को उगलना उचित नहीं, जहर को निगलकर अमृत बाँटना चाहिए। वही तो है नीलकण्ठ महादेव की रीति। वही शिवभक्त हेग्गड़े लोगों के लिए अनुकरणीय है।" 'ओह! मैं भूल ही गयी थी। श्रीदेवी नाम विष्णु से सम्बन्धित है फिर भी वे मीलकण्ठ महादेव का उदाहरण दे रही हैं। मुंहबोली बहिन है हेग्गड़ेजी की. भाई के योग्य बहिन, है न?" माचिकब्बे ने बात का रुख बदलकर इन कड़वी बातों का निवारण कर दिया। "मतलब यह कि मेरे भाई की रीति आपको ठीक नहीं लगती, भाभी।" "श्रीदेवीजी, तामाकी रीति उनके लिए और मेरी मेरे लिए । इस सम्बन्ध में एकदूसरे पर टीका-टिप्पणी न करने का हमारा समझौता हैं। इसीलिए यह गृहस्थी सुखमय रूप से चल रही है।" "अर्धनारीश्वर की कल्पना करनेवाला शिव-भक्त प्रकृति से सदा ही प्रेम करता है, भाभी। वहीं तो सामरस्य का रहस्य है।" "हमारे गुरुजी ने भी यही बात कही थी।" शान्तला ने समर्थन दिया। इसी समय गालब्ने ने सूचना दी कि गुरुजी आये हैं। देखा, तुम्हारे गुरुजी बड़े पहिमाशाली हैं । अभी याद किया, अभी उपस्थित । पढ़ लो, जाओ।" श्रीदेवी गद्गद होकर बोली। माचिकल्वे भी वहाँ से शान्तला के साथ गयी और "तुम बाहर की बारादरी में रहो, हेग्गड़ेजी के आने का समय है। उनके आते ही मुझे खबर देना।" गालब्चे को आदेश देकर वह फिर श्रीदेवी के ही कमरे में पहुंची। थोड़ी देर दोनों मौन बैठी रहीं। बात का आरम्भ करें भी तो कौन-सी कड़ी लें। असल में बात माचिकब्बे को ही शुरू करनी थी। इसीलिए श्रीदेवी भी उसकी प्रतीक्षा में बैटी रही 1 माचिकब्चे बैठे-बैठे सरककर दरवाजे को बन्द करके श्रीदेवी के पास बैठ गयी। उसके कान में फुसफुसाती हुई बोलो, " श्रीदेवी, तुम्हारे भैया सोच रहे हैं कि तुम्हें ले जाकर कहीं और ठहरा दें।" 12. पदमाग शाला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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