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________________ "अब हुआ क्या है सो न बताकर ऐसी पहेली न बुझाएँ, भाभी। भैया का कहना मानकर चलना हितकर कहती हैं, साथ ही यह भी कहती हैं कि मेरा यहाँ रहना खतरनाक है । आश्चर्य है। अब तक खतरा नहीं था, अब आ गया, अजीब खतरा है!" "उसे कैसे समझाऊँ, श्रीदेवी। कहते हुए मन हिचकिचाता है। तुम्हारे भैया कभी चिन्तित होकर नहीं बैठते । कितनी हो कठिन समस्या हो, उसका वे धीरज के साथ सामना करते हैं। परन्तु इस प्रसंग में वे कुछ उद्विग्न हो गये हैं। वे जो भी कहना चाहते हैं वह खुद आकर सीधे तुमसे ही कहा करते हैं, लेकिन इस प्रसंग में सीधा कहने में वे संकोच का अनुभव कर रहे थे। उनके उस संकोच के भी कुछ माने हैं, श्रीदेवी। उन्होंने जो सोचा है उस सम्बन्ध में सोच-विचार करने के बाद जब मुझे ठीक ऊँचा तब मैंने स्वयं तुमसे कहना स्वीकार किया। अब हाथ जोड़कर कहती हूँ कि उनका कहना मानकर हमें इस वास्तविक सन्दिग्धावस्था से पार करो।" यह सुनकर श्रीदेवी की समझ में नहीं आया कि ऐसी हालत में वह क्या करे। हेग्गड़ेजी की बात से ऐसा लग रहा है कि उसकी परीक्षा हो रही है। थोड़ी देर सोचकर श्रीदेवी ने पूछा, “भाभी, एक बात मैं स्पष्ट करना चाहती हूँ। मैं स्त्री हूँ अवश्य । फिर भी मेरा हृदय अपने भैया की ही तरह धीर है। मैं किसी से नहीं डरती, न किसी से हार मानकर झुकती हूँ। आपकी बातों से स्पष्ट मालूम पड़ता है, मेरे यहाँ रहने से आप लोगों को किसी सन्दिग्धावस्था में पड़ना पड़ रहा है। परन्तु यह सन्दिग्धता सचमुच मेरे मन को भी सच्ची जान पड़ी तो आप लोगों के कहे अनुसार करूंगी। इसलिए बात कैसी भी हो, साफ-साफ मुझे भी कुछ सोचने-विचारने का मौका जरूर दीजिए। कुछ भी संकोच न कीजिए।" माचिकब्जे ने एक लम्बी साँस ली। एक बार श्रीदेवी को देखा। कुछ कहना चाहती थी। मगर कह न सको। सिर झटककर रह गयी, आँसू भर आये। फिर कहने की कोशिश करती हुई बोली, "स्त्री होकर ऐसी बात कहूँ किस मुख से श्रीदेवी, मुझसे कहते नहीं बनता।" उसका दुख दूना हो गया। "अच्छा भाभी, स्त्री होकर आप कह नहीं सकतीं तो छोड़ दीजिए। मैं भैया से ही जान लूंगी।" कहती हुई उठ खड़ी हुई। __माचिकब्बे ने उसे हाथ पकड़कर बैठाया। दूसरे हाथ से अपने आँचल का छोर लेकर आंसू पोंछती हुई बोली, "अभी तुम्हारे भैया घर पर नहीं हैं। आते ही मालम्बे खबर देगी, बैठो। दोनों मौन ही बैठी रहीं। मन में चल रहे भारी संघर्ष ने माचिकच्चे को बोलने पर विवश किया, "भगवान ने स्त्री को ऐसा सुन्दर रूप दिया ही क्यों, इतना आकर्षक बनाकर क्यों रख दिया ?" श्रीदेवी ने हेग्गड़ती को परीक्षक की दृष्टि से देखा, "भाभी, अचानक ऐसा प्रश्न 196 :: पद्महादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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