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________________ आगमन की प्रतीक्षा में बैठा रहा । हेगड़ेजी के घर का आतिथ्य राजमहल के आतिथ्य से कम नहीं रहा। इनके आने के दो-एक दिन बाद ही हेगड़ेजी आये । महारानी चन्दलदेवीजी को अपने पास सुरक्षित रूप से पहुँचाने सौंपने की पुष्टि में एक सांकेतिक पत्र देकर हेगड़े मारसिंगय्याजी ने हिरिय चलिकेनायक को बिदा किया। महारानी चन्दलदेवीजी ने भी यथोचित आदर- गौरव के साथ यहाँ तक ले आने और सुरक्षित रूप से पहुँचाने के लिए अपनी तृप्ति एवं सन्तोष व्यक्त करके नायक को महाराज के लिए एक सांकेतिक पत्र दे बिदा किया। - मरियाने दण्डनायक ने युद्ध-शिक्षण के उद्देश्य से कुमार बल्लाल को दोरसमुद्र में ठहराया, यह तो विदित ही है। परन्तु बल्लाल कुमार की शारीरिक शक्ति इस शिक्षण के लिए उतनी योग्य नहीं थी। फिर भी उसने शिक्षा नहीं पायी, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता। शारीरिक बल की ओर विशेष ध्यान रखने के कारण मरियाने दण्डनायक ने राजकुमार को ऐसी ही शिक्षा दी जिसमें बल-प्रयोग की उतनी आवश्यकता नहीं पड़ती थी। तलवार चलाना, धनुर्विद्या आदि सिखाने का प्रयत्न भी चला था। बहुत समय तक अभ्यास कर सकने की ताकत राजकुमार में नहीं, यह जानने के बाद तो शिक्षण देने का दिखावा भर हो रहा था। परन्तु उसे और उससे बढ़कर चामव्वे को एक बात की बहुत तृप्ति थी। जिस उद्देश्य से राजकुमार को वहाँ ठहरा लिया गया था उसमें वह सफल हुई थी। राजकुमार बल्लाल का मन पद्मला पर अच्छी तरह जम गया था। कभीकभी चामला पर भी उसका मन आकृष्ट होता था। परन्तु इस ओर उसके माँ-बाप का ध्यान नहीं गया था क्योंकि यह निर्णय चामच्चे का ही था कि उसने बिट्टिदेव के ही लिए चामला को जन्म दिया है। इस दिशा में प्रयत्न आगे बढ़ाने के लिए ही खुद उसने युवरानी एचलदेवी को दोरसमुद्र बुलवाया था। परन्तु... ? इन सब प्रयत्नों का कोई फल नहीं निकला। उनकी आये काफी समय भी बीत चला था। आने के बाद एक महीने के अन्दर सबको बेलुगोल भी ले जाया गया था। नामव्वे किसी न किसी बहाने युवरानी और बिट्टिदेव पर प्रेम और आदर के भाव बरसाती रही । परन्तु उसके प्रेम और आदर की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई जिसकी वह प्रतीक्षा कर रही थी। यह खबर मालूम होने पर कि बिट्टिदेव शिवगंगा भी गया था, उसकी कल्पना का महल एक ओर से दह गया-सा प्रतीत होने लगा था। उसके अन्तरंग के किसी कोने में एक संशय ने घर कर लिया था। ऐसी हालत में वह चुप 15 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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