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________________ करनेवालों का घोर शिक्षक, प्रसिद्ध विशेषण आपके लिए अन्वर्थ है।" माचिकब्जे ने कहा। वह चकित हो हेग्गड़ती की ओर देखने लगा। "आप चकित न हों, हमें सबकुछ मालूम है।" अतिथि देवी के ग्नान की सूचना अतिमि महाशय को देने आयी गालब्बे ने वहाँ मालकिन को देखा तो उसने अपने चलने की गति धीमी कर दी, यद्यपि उसकी पैजनियाँ चुप न रह सकी। हेग्गड़तीजी समझ गयीं कि देवीजी का नहाना-धोना हो चुका है। "आप नहाने जाते हों तो गालब्बे आपके लिए पानी तैयार कर देगी।" कहती हुई हेगड़ती चली गयी। स्नान करते वक्त इस हिरिय चलिकेनायक को अचानक कुछ सूझा। इसलिए स्नान शीघ्र समाप्त करना पड़ा। मार्ग की थकावट की ओर उसका ध्यान ही नहीं गया। गुसलखाने से जल्दी निकला और गालब्बे से बोला, "कुछ क्षणों के लिए हेम्गड़तीजी से अभी मिलना है।" "आपका शुभनाम?" "नायक।" "कौन-सा नायक?" " 'नायक' कहना काफी है। उसने हेग्गड़तीजी को खबर दी। वे आयीं। हिरिय चलिकेनायक ने इर्द-गिर्द देखा। प्राधिकब्बे ने गालब्चे को आवाज दी, वह आयी, तो कहा, "देखो, अम्माजी क्या कर रही है।" । इसके बाद नायक हेग्गड़तीजी के नजदीक आया और कहा, "इन देवीजी का परिचय आपको और हेगड़ेजी को है, यह बात देवीजी को मालूम नहीं होनी चाहिए। इस विषय में होशियार रहना होगा, यह प्रभु की आज्ञा है।" "इसीलिए हमने यह बात अपनी बेटी से भी नहीं कही।" माचिकब्बे ने कहा। "नहाते वक्त भी यह निवेदन उसी क्षण करना आवश्यक जान पड़ा। इसे आप अन्यथा न समझें।" नायक ने विनीत भाव से कहा। "ऐसा कहीं हो सकता है? ऐसी बातों में भूल-चूक होना स्वाभाविक है। इसलिए होशियार करते रहना चाहिए। बार-बार कहकर होशियार कर देना अच्छा ही है। अच्छा, अब और कुछ कहना है ?" "कुछ नहीं।" "देवीजी को अकेलापन नहीं अखरे इसलिए मैं चलती हूँ। लेक को भेज दूंगी। आपको कोई आवश्यकता हो तो उससे कहिएगा।" कहकर माचिकब्बे चली गयी। अव हिरिय चलिकनायक वास्तव में निश्चिन्त हो गया और हेगड़ेजी के शीघ्र एट्टमहादेवी शान्तला :: 157
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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