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________________ कैसे बैठी रह सकती थी? स्वभाव से ही वह चुप बैठनेवाली नहीं थी। सरस्वती की कृपा से उसे जितनी बुद्धिशक्ति प्राप्त थी उस सबका उसने उपयोग किया। किये गये सभी प्रयत्न निष्फल हुए थे, इसे वह जानती थी, फिर भी वह अपने प्रयत्नों से हाथ धोकर नहीं बैठी। वह निराश नहीं हुई। आशावादी और प्रयत्नशील व्यक्ति थी वह । दण्डनायक के घर से निमन्त्रण मिलता तो यह चामला को ही आगे करके जाती। युवरानी और राजकुमारों के सामने एक दिन पद्मला और चामला का गाना और नृत्य हुआ था। माचन्त्रा सोच रही थी कि संगीत के बारे में बेलुगोल में बात उठी थी तो दोरसमुद्र में पहुंचने के बाद युवरानीजी कभी-न-कभी कहेंगी, 'चामबाजी अभी तक आपकी बच्चियों के संगीत एवं नृत्य का हमें परिचय ही नहीं मिला।' तब कुछ नखरे दिखाकर उनके सामने नाच-गान कराने की बात सोच रही थी। मगर युवरानीजी ने इस सम्बन्ध में कभी कोई बात उठायी ही नहीं। चामव्वा के मन में एक बार यह बात भी आ गयी कि शायद युवरानीजी यह बात उठाएगी ही नहीं। पूछने या न पूछने से होता. जाता क्या है-यह सोचकर ऐंठने से तो उसका काम बनेगा नहीं। वह विचार-लहरी में डोल ही रही थी कि महाराम के दिन के गाने से जसे आपनी इच्छा पूर्ण करने का एक मौका मिला। इस मौके पर पद्मला और चामला का नृत्य-गान हुआ। महाराज ने उनकी प्रशंसा भी की। बल्लाल कुमार का तो प्रशंसा करना सहज ही था। वहाँ मौज्द अधिकारियों में एक प्रधान गंगराज को छोड़ अन्य सब दण्डनायक से निम्न स्तर के थे। वे ती प्रशंसा करते ही। और गंगराज के लिए तो ये बहन की बच्चियाँ ही थीं। युवरानी ने जरूर "अच्छा था।" ही कहा। तब चामय्या ने कहा, "बेचारी बच्चियाँ हैं और अभी तो सीख हो रही हैं। वह भी आपने कहा इसलिए दण्डनायकजी ने इन्हें सीखने की अनुमति दी। फिर भी हमारी बच्चियाँ होशियार हैं। जल्दी-जल्दी सीख रही हैं। आपका प्रेम और प्रोत्साहन तो है ही।" "इसमें मैंने क्या किया। लड़कियों के वश में तो यह विद्या स्वयं आती है। हम तो इतना ही कह सकते हैं कि ये सीखें। मेहनत करनेवाली तो ये ही हैं।" "सच है। बच्चियों को तो सीखने की बड़ी चाह है। सचमुच उन्होंने उस होगड़ती की लड़की से भी अच्छा सीखने का निश्चय किया है।" "तो यह स्पर्धा है।" चायब्वा यह सुन कुछ अप्रतिभ-सी हुई । उसे ऐसा लगा, उसके गाल पर चुटकी काट ली गयी हो। पूर्ववत् बात करने की स्थिति में आने में उसे कुछ वक्त लगा। हंसने की चेष्टा करते हुए कहा, "स्पर्धा नहीं...अच्छी तरह सीखने की इच्छा से, दिलचस्पी से सोखने का निश्चय किया गया है।" "बहुत अच्छा,"युवरानी ने कहा। यह प्रसंग उस दिन भी इसी ढंग से समाप्त पट्टमहादेवी शासला :: 159
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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